मृत्यु और सृजन
विश्व पटल पर जब आया, एक प्रश्न चिन्ह संग वो लाया । क्या है वह जो ये द्वैत करे, नर नारायण में भेद करे।। ईश्वर से तब मृत्यु का जन्म हुआ, फिर महाकाल का वचन हुआ। की जीव कुछ काल को आएगा, फिर उसे काल ग्रास कर जायेगा।। परंतु जीव जगत को ये न भाया, और वो ईश्वर के चरणों में आया। कहा कि प्रभु, हमारा वंदन स्वीकार करे, हमारी इस वेदना पर ध्यान करे।। प्रभु,आपका आदि न अन्त है , आप हो जिनसे उपजे हर छंद है। आप से समय ने लिया जन्म, आप पर होता दुनिया का अंत।। आप हो सोम समान अमृत प्याला, आपने ही ये जीवन ढाला। आप से ये धरती, अम्बर, पाताल है, आप से ही तो हर जीव में संचार है।। हम भी आपके अंश हैं, आपसे ही उपजे वंश हैं। जब काल हमे ग्रास कर लेगा, तब आपका भी एक अंश हर लेगा।। आप अगर मृत्यु का सृजन कर दोगे, आप अपनी रचना को खुद से हर लोगे। क्योंकि हम तो आकार चले जायेंगे, पर आप अमर रह जायेंगे।। प्रभु, कुछ ऐसा योग करे, हमे इस धारा से न वियोग करे। हम में भी ये गुण व्याप्त करे, जिसे हम भी अनंत को प्राप्त करे।। ये सुन कर प्रभु मंद मुस्काए, फिर कहा सबसे, जो मिलने आए। ये सत्य है कि तुमने मुझसे आकार लिया, तुम्हे सृजन कर मैंने खुदको तुम में उतार दिया।। ये सत्य ही काल तुम्हे जब हर लेगा, तो मेरा मन भी वेदना से भर देगा। परंतु काल का होना भी अनिवार्य है, इससे जीवन चक्र का आधार है।। इस लोक का जब मैंने निर्माण किया, तब इस विचार पर भी ध्यान किया। वसुधा, जिससे सब पोषण पाते है, जीव जगत जिस पर समाते है।। जरा उसका भी तुम संज्ञान करो, उसके कष्ट पर भी ध्यान करो। अगर काल तुमने न हर पाएगा, तो वसूदा का बोझ बढ़ जायेगा।। वो अगर इस बोझ तले दब जायेगी, तो कैसे तुम्हे मातृत्व का सुख दे पाएगी। इसलिए जो रचा है उसका विनाश अनिवार्य है, ये ही जीव जगत का आधार है।। ये सुन सब बोले कि भले हमे हर ले। इस जीवन चक्र को पूर्ण कर ले। परंतु जीव जगत को ये वरदान करे, हम सब भी अमरत्व का पान करे।। प्रभु, कुछ ऐसी युक्ति दीजिए, हम पर भी कृपा दृष्टि कीजिए। कि जब हम शून्य में लिन हो जाए, फिर भी हम अनंत को पाए।। प्रभु, आपके समान हम भी बन पाएंगे, तभी तो आपका अंश कहलाएंगे। प्रभु ये सुन विचार में लिन हुए, दो पल शब्दों से विहीन हुए।। फिर बोले तुम जब जगत में जाओगे, तुम भी मेरा आकार वहां पाओगे। जैसे मैं तुम्हें सृज पाया हूं, अपना रूप तुम में लाया हूं।। तुम भी इस जगत में सृज पाओगे, अपने समान जीव को धारा पर लाओगे। अब तुमसे इस जगत का आधार होगा, तुमसे ही सृष्टि के कल का आकार होगा।। इस तरह तुम जब जगत में आओगे, उम्र को पुर्ण कर जब वैकुंठ को जाओगे। तब काल तुम्हारी काया को तो हर पायेगा, परंतु तुमसे उपजा वंश रह जायेगा।। इस तरह मनुष्य को सृजन का वरदान हुआ, और वह भी देव समान हुआ।। :दिव्यांश सक्सेना
मानव जीवन
भरी दुपहरी को मैंने सुरज को ढलते देखा है जिंदा इंसानों को भी मैंने तिल तिल जलते देखा है कांटों और अंगारों पर मैंने सच को चलते देखा है निश्चल मन में भी मैंने भ्रम को पलते देखा है सत्य को मौन रह मैंने झुठ को चलते देखा है चंद सिक्कों पर मैंने चौले बदलते देखा है Copyright Kaviraj Rj yogi Baya-sikar Rajasthan
घर के वृक्ष
वैसे तो पुष्प लता और वेल हर मन को हर्षाती है, क्योंकि उनकी महक और छटा की बद्री सब जग पर छा जाती है। किन्तु परन्तु आज इन रंगों को और अब मैं ना देखूंगा, सब जिस पर मनमोहित है, इन सब पर आज नजर ना फैरूंगा। आज मै सोच रहा हूं उस दरख़्त को देख कर, जिसकी छाया के नीचे, सींचती हुआ है ये वन मनोहर। उस विशाल वृक्ष जिसके नीचे बसी है ये बगिया, जिसके होने से खिली है पुष्प लता और ये कलिया। इसी वृक्ष के नीचे गुजरे है ,जहां हर एक मौसम, हर धूप में जिसकी छाया में सब ने पाया है मरहम। बारिशों में भी आंधियों से उसने ही बचाया था, सर्दियों में उसके नीचे हर फूल फूल मुसकाया था। हर कोई बगिया को देखता है, पर उस तरू को ना देख पाता है, पर वह अपने नीचे खिले हर पुष्प को देख देख मुस्काता है। इसलिए है वृक्ष! आज मेरा वंदन स्वीकार करे, अपने घरों के वृक्षों से हम सब, इस तरह से प्यार करे।
कोरोना की विदाई
बादल उमड़ना भूल गए, धरती माता रो रही। कांप रही कोंख सभी, दुनिया डग मग हो रही। शादी से पहले दुल्हन डरे, मांग लिए कोरी कोरी। जिंदगी के इस पड़ाव में, यमराज खींच रहा डोरी। एक कमरे सिमटी दुनिया, ये कैसी चली बीमारी। बिना दिखे ही वायरस ये, मानवता पर भारी। मौज मस्ती भूल गए, दुख की आंधी तेज चली। राजा राजा लड़ रहे , लोग मर रहे गली गली। आया क्यों कहाँ से, इंसान तेरी सवारी। इस सूक्ष्म जीव की, अब विदाई की तैयारी। बला बड़ी है, जतन करो, मत समझो इसे टली। मास्क लगाओ, हाथ धोवो, काढ़ा की तो घुट भली। ज़हर घुला हवाओ में, साँस नहीं रुकने देंगे। लड़ेंगे, भिड़ेंगे, भगाएंगे प्रयास नहीं रुकने देंगे। वैक्सीन हमने बनायीं है , दवाई और बना लेंगे। आस बहुत है, साहस बहुत है , प्रयास नहीं रुकने देंगे। तूने बेड बहुत लगवाए , माँ बहनो को खूब रुलाया। तेरे कहर से भी बच जायेंगे , प्रयास नहीं रुकने देंगे। बॉम्बे फ्लू भी आया था , प्लेग भी आया था। जब हमने हुंकार भरी , उलटे पाओ भागा था। जंग बहुत जीती है हमने , हमने सबको हराया है। कैसी अजीब जंग है ये, हमारा सह्ययं आजमाया है। तूने बहुत खेल लिया, ये अब हमारा वार है। कितना भी तू जोर लगा ले , अब तो हम तैयार है। बाहें बहुत फैलायी तुमने , इम्युनिटी हमारा हथियार है। बच गए अगर हम तुझसे ये , हमारी जीत और तेरी हार है।
खुशियों के दिन फिर आवैंगे
दु:ख के बादल छट जावैंगे थाम उस प्रभु का नाम जपो खुशियों के दिन फिर आवैंगे हृदय.. में. .. विश्वाश .रखो! दुश्मन तै हाम्म डरते कोन्या पीठ दिखा कै भागे कोन्या जिब तक भागै नहीं करोना थाम घर में ही आराम करो। जै थारे लडज्या करोना इस तै बिलकुल नहीं डरो ना तुलसी गिलोय काढ़ा पीकर इसका...काम...तमाम. करो ! गलती थामनै बहुत करी सै धरती नै बंजड़ करी सै पेड़ लगाकर धरती मां पर ऑक्सीजन का निदान करो। हवा ....झूम ....कै.. .गावैगी सभ.. नै.... गीत... सुणावैगी फिर खिल ज्यांगी फुलवाड़ी थाम थोड़ा धीरज धारण करो। ©️ अशोक योगी कालबा हाउस नारनौल
फिर ना उदास होना
रात के बाद दिन का ही, हैं होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll ये मुश्किल दौर का भी,हैं खत्म होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना काली घटा के बाद ही हैं, नीले आकाश का होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll दुःख के बाद ही हैं, निश्चित सुख का होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll पतझड़ के बाद ही हैं, हरितमय का होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll तपती धरती के बाद ही हैं, इसको गिला होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll पसीने के बाद ही हैं, शरीर का ठंडा होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll आंधी के बाद ही हैं, निरव बयार का होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना l अभी समय हैं कठिन,पर इसको हैं फिर से सुन्दर होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll जी जीवन को ऐसे, जैसे कल ये हो ना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll काम कर जा ऎसा, पृथ्वी महके कोना कोना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll ना गुमान कर देह पे, इसको हैं मिट्टी होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll हैं यही सत्य, किसी को नहीं हैं अमर होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना l ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना....... "स्नेहिल राज " 02.05.2021
हम महाकाल को पूजने वाले भारत की संतान है
रब ने ब़ख्से सबके हिस्से अवनी अम्बर अग्नि आब़और पौन हैं फिर इंसानों को काफ़िर कहने वाले ये ज़ाहिल कौन हैं। जो सीखाता हो नफ़रत इंसानों से वो अल्लाह कैसा या तो नुक़्स है ख़ुदा में तेरे या संगदिल तेरा दृष्टिकोण है। ग़र ज़न्नत नसीब होती है तुझे काफिरों के क़त्ल से तो शियाओं का ख़ून बहाने वाले ये सुन्नी कौन हैं। ग़र बरसती है रहमत अल्लाह के फ़ज़ल से दुनियां में तो मज़लूमों का ख़ून बहाने वालों पर तेरा अल्लाह क्यों मौन है। यूं न मिटा पाएगा हस्ती हमारी तू चाहे जितना बड़क ले मरकर भी मिटती नहीं हस्ती हमारी कहने वाली तेरी कौम है। मिट गए मुहम्मद़ अक़बर गौरी और गज़नवी जहां से घट- घट में बसने वाले राम हमारे अब भी दुनियां के सिरमौर है। हम महाकाल को पूजने वाले भारत की संताने हैं अर्जुन से धनुर्धर बनाने वाले जिन्दा अभी गुरु द्रोण हैं
विद्युत कर्मी
कट रही है ज़िन्दगी, जैसे,जी रहे वनवास में l हम विधुंत कर्मी है, ड्यूटी करें हर सांस में। हम फंसे इस जाल में, सब चिंता करते गांव में, जिंदगी मानो ठहर गई है, बेडी जकडी पाँव में। सबकी छुट्टी हो गई, बिजली ने पकडी रफ्तार, फिर भी लोग कहे, बैठा कर पैसा देती है सरकार। घर में राशन नही, फिर भी ड्यूटी जाते है, सारी दुकाने बन्द हो जाती, जब हम वापस आते हैं। माँ बाप सिसककर पूछ रहे,बैटा तुम कैसे खाते हो, जब पूरा देश बन्द है तो, तुम ड्यूटी क्यो जाते हो। यहाँ सबकुछ मिल रहा, झूठ बोलकर माँ को समझाते है, देश के लिये समर्पित जीवन, इसलिए ड्यूटी जाते हैं। सेना,शिक्षक,डाँक्टर नही हम, सम्मान नहीं हम पाते हैं, हम तो विधुंत कर्मी हैं साहब, केवल अपनी ड्यूटी निभाते हैं । Dedicated to NTPC Engineers
जादू किताब
ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| 100 खंड, 1000 उपखण्ड, हजारो पन्नो की पोथी, कर्मचारी के लाभ में ये हमेशा लगती क्यों थोथी | ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| नियम बहुत लिखे है लेकिन फिर भी लगे न पूरी, दिमाग हमने बहुत खपाया, अब भी समझ अधूरी | ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| कामगार हो या कोई विद्वान, समझ न सका इसकी विज्ञानं, ये कौन ऐसी पुस्तक है, जिसका मैनेजमेंट करता गुणगानं ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| बिना एक अक्सर बदले ही ये कैसे नियम बदल जाता हर पंक्ति का मतलब है पर हमें समझ नहीं आता | ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है||
बचपन का ज़माना था
एक बचपन का ज़माना था जिसमें खुशियों का खजाना था चाहत चांद को पाने कि थी पर दिल तितली का दीवाना था ख़बर न थीं कुछ सुबह की न शाम का ठिकाना था थक कर आना स्कूल से पर खेलने भी जाना था मां की कहानी थी परियों का फ़साना था बारिश में कागज़ कि नाव थीं हर मौसम सुहाना था. रोने कि वजह ना थीं न हसने का बहाना था क्यों हम इतने बड़े हो गए इससे अच्छा तो वो बचपन का ज़माना था
मेरे जनाजे पर अश्क बहाने वाले वाले लोगो
जम्हूरियत -ए- हुक़ूमत हूं पर वहाबी नहीं हूं मै मयकश -ए- नबी का हूं पर शराबी नहीं हूं मै माना कि शौक है तितलियों को छूने का मुझे पर, पर कुतर दू किसी का ऐसा कसाबी नहीं हूं मै तेरे चिलमन के इंतजार में खुले है झरोखे अब तलक अदना सा आदमी हूं कोई ओलीया नमाज़ी नहीं हूं मै कभी वो आंखों का सुरूर हुआ करते हमारे जनाब अब उसके सुर्ख होंठों की शराब पुरानी नहीं हूं मै बहक जाता है उसकी बेकसी के आलम में " योगी" शायद अब उसके ख्वाबों की जिंदगानी नहीं हूं मै मेरे जनाजे पर अश्क बहाने वाले ना कदर लोगो बद अख्तर न समझ मुझको इतना बादाबी नहीं हूं मै
एक रात सपनो की
अब तो गहरा गई है रात चलो सो जाएं ख़ाब में होगी मुलाक़ात चलो सो जाएं रात के साथ चलो ख़ाब-नगर चलते हैं साथ तारों की है बारात चलो सो जाएं रात-दिन एक ही होते हैं जुनूं में लेकिन अब तो ऐसे नहीं हालात चलो सो जाएं रात की बात कहेंगे जो ये परेशां गेसू फिर से उट्ठेंगे सवालात चलो सो जाएं नींद भी आज की दुनिया में बड़ी नेमत है ख़ाब की जब मिले सौग़ात चलो सो जाएं फिर से निकलेगी वही बात कभी बातों में फिर बहक जाएंगे जज़्बात चलो सो जाएं
मेरा जीवन बन गया मधुबन
थिरकते पांव , उमड़ते भाव शादी की शहनाई में झंकृत मन, अलंकृत तन वसंत की तरणाई में मधुर.. मकरंद .. सा फिर खिले तेरा यौवन प्रेम तुम्हारा पाकर "प्रिये" मेरा जीवन बन गया मधुबन। किसलय कोपल संग नव प्रभात हुआ अंबर... में.. अरुणिमा... छाई जीवन सुंदर स्वप्न बना जब से तुम जीवन में आई महकते रहना घर आंगन में बनकर सुगंध चंदन वन प्रेम तुम्हारा...पाकर.... "प्रिये" मेरा जीवन बन गया मधुबन । मृदुल तन ,रक्तिम मुख उदय होता मानो दिवाकर सुनकर मधुकर की मधुर गुंजार तुम.... आओ न .......... प्रिये कर .. नव .. यौवन .. श्रृंगार जागृत करें स्वप्निल दृगों में_ प्रथम .......वसंत......मिलन प्रेम ...तुम्हारा.. पाकर.. "प्रिये" मेरा जीवन बन गया मधुबन
शून्य सी प्रीत
प्रेम की एक खूबसूरती ये देखी कि वो कभी कम नहीं होता हर दिन बढ़ता ही जाता है चारो तरफ प्रेमत्व की खुशबू से प्रेम जीव को सराबोर करता रहता है अनंत शून्य में जैसे कोई ब्लैक होल हो वैसे ही इस अनंत ब्रह्माण्ड में प्रेम भी उसी भांति क्रियाशील रहता है जिसका कही कोई अंत नहीं,कहीं कोई छोर नहीं, और इसके सिवा कहीं कुछ और है भी नहीं, संपूर्ण सृष्टि में प्रेम और केवल प्रेम ही सर्वोपरि है!! ?!!
प्रेमत्व
हां, मैंने प्रेम करना अपने प्रियतम से सीखा है।। कर्तव्यों के पथ पर चलते हुए भी प्रेम किया जा सकता है.... जिम्मेदारियों को निर्वहन करते हुए भी प्रेम किया जा सकता है... बिना जताए और बिना बताए भी प्रेम किया जा सकता है.... आंखों से बोलकर और होठों को सिलकर दिल से भी प्रेम किया जा सकता है... दुनिया से ओझल इक दुजे से दूर, ख्यालों में हर क्षण अपने प्रिय तम में खोकर बहुत प्रेम किया जा सकता है.... हां प्रेम करना मैंने सीखा है अपने प्रियतम से और ये सीख दुनिया की सबसे अमूल्य सीखों में एक है!
SAFE IN HEARTS
Oh, you too forgot, It is ok, though it pains, I am sure, it helped, Pain keep coming, Is it natural? It is ok, it makes us strong, I am sure, that was a help from me, It is ok, if it eases their pain, I feel pity for them, if you hurt anyone, it may come as boomerang, The pain makes us soft, It is ok, God help us to bear, Struggles shows the new path, Be thankful for the ache, Remember it for a story, Be the way, Be remembered, Make the life very simple, Don't be serious, it is ok to loose, Be happy, make them feel happy, Yes, life is too short to waste, Be ray of light, it is ok others may be dark, It is ok, be there to take the pain, It makes you to live in the heart of others, How nice it will be? You are safe in the heart of others, You are safe.
वक्त
एक वक्त था जो बीत गया वक्त के साथ भाग्य फिसलता गया वक्त की अनदेखी की थी हमने शायद वक्त ने हमारा वक्त ही बदल दिया मैंने घड़ी को कई मर्तबा देखा होगा मगर उस समय चक्र को समझ नहीं पाया इस अनदेखी से काल के उस चक्र को अभिमन्यु सा में ना तोड़ पाया मैं चला था अपना वस्तुनिष्ठ भाग्य लेकर अनदेखी ने मुझको उलझनों का मंदिर बना दिया इस वक्त की मार ने मुझको उलझनो के समाधान का मुसाफिर बना दिया आगे बढूं तो फिसलू मैं पर वक्त ने ही मुझको संभलना सिखा दिया अब खुद में हिम्मत जोश फूंक कर अभिमन्यु सा मै कालचक्र से आजमाइश करना चला गया अब मैंने सीख लिया है वक्त से वक्त के साथ फतेह तक चलने का सलीखा फिर से चल पड़ा हूं अपना वस्तुनिष्ठ भाग्य लेकर उम्मीद यही की अनदेखी न कर अपना भाग्य फिर से सवार सकूं
आगे बढ़ते रहो
लड़ते रहो, गिरते रहो पर, आगे बढ़ते रहो l टूटते रहो, जुटते रहो, पर आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** सोने की तरह आग मे गलो , पर आगे बढ़ते रहो l कठिन दुश्वारियों को गले लगाओ, पर आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** किसी को गिरा के नहीं, पर पछाड़ के आगे बढ़ते रहे l किसी से अलगाव करके नहीं, पर मिलाके आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** किसी को रुला के नहीं, पर हंसा के आगे बढ़ते रहो l किसी को फसा के नहीं, पर सुलझा के आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** किसी को मिटा के नहीं, पर बना के आगे बढ़ते रहो l किसी को तिरस्कृत करके नहीं, पर प्यार दे के आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** किसी को दिखाने के लिए नहीं, पर अलख जगाने के लिए आगे बढ़ते रहो l खुद के लिए नहीं, देश को बढ़ाने के लिए आगे बढ़ते रहो, देश को आगे बढ़ाने के लिए आगे बढ़ते रहो ll ***** ***** ***** ***** ***** "स्नेहिल राज " काँटी, मुजफ्फरपुर बिहार 15.12.2020
नक़ाब
कितना छुपाओगे खुद को दुनिया की नज़र से कि ये आँखे सारे राज खोलती है चाँद छुपा बैठा है घूंघट के पीछे ये घूंघट की अदाएँ बोलती है ये हैरानी क्यों है इन आँखो मे आपके दीदार की गुज़ारिश ही तो की है एक पर्दा है हमारी खता और आपकी रज़ा के बीच उस पर्दे को गिरने की वजह ही तो दी है
आजकल रिश्तो में वो बात नहीं होती
आजकल रिश्तों में वो बात नहीं होती, जिस्मानी मुहब्बत में रूह से मुलाकात नहीं होती ! बांट दिया फिरका -परस्तो ने मजहब को यहां, वरना आदमियत की कोई नस्ल और जात नहीं होती ! महफ़िले सजती हैं तंग गली के दावत खानों में हाथी, घोड़े पालकी वाली अब बारात नहीं होती ! सिसक रहा है बचपन मैकाले के लादे बस्तों में पांच सितारा स्कूलों में संस्कारों की बात नहीं होती ! जवानी छीन ली इडली,डोसा बर्गर जैसे पकवानों ने खाने में अब सीरा, लापसी और पात नहीं होती ! फिजाओं में भर दिया ज़हर शजर पर खंजर चलाकर, सावन में अब रिमझिम रिमझिम बरसात नहीं होती ! दफ़न है सफ़र- ए- जिन्दगी इस्पाती इमारतों में , छतों पर ताकती सितारों वाली अब रात नहीं होती ! यूं तो तरक्की बहुत की है "योगी " ने शहर के सफ़र में, मगर शहर में अब भगिनी और मां साथ नहीं रहती !
Memories
Most things are forgotten over time. Even the war itself, the life-and-death struggle people went through is now like something from the distant past. We’re so caught up in our everyday lives that events of the past are no longer in orbit around our minds. There are just too many things we have to think about everyday, too many new things we have to learn. But still, no matter how much time passes, no matter what takes place in the interim, there are some things we can never assign to oblivion, memories we can never rub away. They remain with us forever, like a touchstone......??
शुभ दीपावली !!! 2020
आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l और अपने अहंकार को मूल से मिटाये ll ***** ***** ***** ***** ***** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l एक अवगुण को तो दीप मे जलाकर नष्ट कराये ll ***** ***** ***** ***** ****** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l अपने तन, मन और धन से किसी निर्धन परिवार को पुलकित कराये ll ***** ***** ***** ***** ***** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l बच्चों का बचपन उनको ख़ुशी ख़ुशी लौटाये ll ***** ***** ***** ***** ***** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l स्नेह से सबको अंगीकार करने का गुण अपनाये ll ***** ***** ***** ***** ****** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l आत्मबल रूपी तेल से अपने को जलाये ll ***** ***** ***** ***** ****** आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l सर्वजन सुखाय की अनोखी रीति की अलख जगाये ll
ऐसी दिवाली मनाएं
आओ अबकी बार ऐसी दिवाली मनाएं , भूखे,प्यासे मजलूमों के घर प्रेम के दिए जलाएं ! भरे हुए पेटों की छोड़कर चिन्ता, फुटपाथ पर बैठे किसी यतीम को खाना खिलाएं ! भर जाएं कोठे अन्नदाता के धान से, मेघाच्छिदत अंबर से विनती कर प्रेमरस बरसाएं ! सब जगह हो हर्षोल्लास, सब रहे निरोगी, ऐसी मंगलमयी भावना के फिर से गीत गाएं ! कोई विरहणी न आकुल हो पिय बिन , सबके घर आँगन माँ लक्ष्मी प्रेमधन बरसाएं ! भय ,भूख भ्रष्टाचार मिटे,सनातन भारत फिर बढे, आओ सब मिलकर भारत को फिर विश्वगुरू बनाएं ! न रहे अंधेरा दूर क्षितिज तक,चमक-चाँदनी हो अंबर मे, अवनी से अंबर तक कलम 'योगी' की आशा के दीप जलाए !
क्रांति
दुनिया की भीड़ में नजर क्यों कोई आता नहीं l डरे से हैं सब लोग क्यों इनके खून में उबाल आता नहींll गर्दन झुका के जो जीना सीख लिया क्यों गर्व से गर्दन कोई उठाता नहींl अहिंसा और कायरता में इन्हें क्यों नहीं अंतर समझ आता नहींll पड़े देख घायल को रास्ते में हर कोई आहे भरता है क्यों आकर उसे कोई उठाता नहींl आक्रोश में जल रही हैं आंखें क्यों इन में खून उतर आता नहीं ll अन्याय को सहना सीख लिया क्रांति का चिन्ह नजर आता नहींl स्वतंत्र हुए सालों बीत गए पर गुलामी का असर जाता नहीं ll वक्त बदला हालत बदली विकास दर पर दर होता गया पर क्यों गरीब लाचार की हालत वही है उसका स्वर आज भी संसद की दीवारों में सुना जाता नहींl समय और साम्राज्य बदले पर भी क्यों यह दास्तां का कलंक जाता नहींll सभी जानते हैं ना कुछ लेकर आए थे ना कुछ लेकर जाएंगे फिर भी इंसान को इंसान क्यों पहचानता नहींl जाने किस मद में मदहोश हैं लोग कोई खुद को पहचानता नहींll प्रश्नों की है झड़ी दिल में उत्तर क्यों नजर आता नहीं सदाचार सब अपन हुए इमानदारी वह कर्तव्य निष्ठा बनी भिखारी है l धूर्तता और चाटुकारिता ने बाजी मारी है, जहां देखो यह एस करें बाकी सब में मारामारी हैll जीवन मूल्यों के इस खेल में स्वाभिमान क्या यूं ही हारता जाएगाl यूं ही एक कामचोर कामकाजी की खिल्ली उड़ाएगाl क्या यही है श्री राम का "हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा" ll
आज और कल
जो हैं वो आज मे ही हैं, कल तो केवल एक एहसास हैं l ख़ुशी भी आज ही हैं, बनाना भी आज ही सुन्दर मिजाज हैं ll मन को ना उलझाओ कल मे l सब समेटो आज की ही हलचलll जिओ आज का हरेक पल l क्योंकि हो ना हो कल ll खेलो, कूदो खुशियाँ मनाओ आज l सब कर दो नयोझवार मनराज ll दाता का दिया आज, भर दो साहस से l मुरीदे भी पूरी कर लो आज सब अपने तन मन से ll
दोस्त
ज़िन्दगी में तो बहुत उतार चढाव हैं l इसके कभी सहज़ -सरल तो कभी कठिन स्वभाव हैं ll दोस्तों का साथ होना, सुन्दर सा एहसास होता हैं l उनसे सुख -दुःख बाटने का काम आसान होता हैं ll ज़ब हमसफर हो सहयोगी और समझदार l तब हर सफर भी लगता है सदाबहार ll बचपन की यादो से तो अब अभिमान होता हैं l थी थोड़ी सी जरूरते पर ख़ुशी का बहुत पान होता था ll जीवन को तो अपने ही सुनहले रंगों से सजाना हैं l दूसरों की सुनके इसको नहीं बदरंग बनाना हैं l सोचो और करो आत्मा परिछन और ढूंढो जिंदगी का लक्ष्य l पाओगे एक चीज की करो सबके लिए कुछ कर्म ll
मत उलझ
गर बचानी हैं बेटी तुझे अपनी तो ना बीजेपी और ना कांग्रेस मे उलझ हिन्द देश का वासी है तु ना हिन्दू और ना मुस्लमान में उलझ भाईचारा हैं तेरा मूल सदा ना तु यहां किसी जातिवाद में उलझ गर बचानी हैं लाज तुझे अपनी तो ना तु इन हुक्मरानों की हुकूमत में उलझ हैं ये सब तेरी आढ में आगे जाने वाले तो ना तु इनकी जादू सी बातों में उलझ रहना है तुझे यही कही जमीन पर तो ना तु किसी क्षेत्रक वाद में उलझ सीखा खुद अपनी लाडली को हर दांव-पेंच ताकि ना वो किसी की बाट देखे बचाने को कर उस पर इक अहसान ऐसा जिसे सीख वो महफूज़ करे इस धरा को गर बचानी हैं बेटी तुझे अपनी तो खुद खडा हो नारी जात की रक्षा को।।
तुमको निगाहें ढूंढ़ रही हैं
झिर मिर झिर मिर मेहा बरसे पागल मनवा मिलन को तरसे मन चंचल .चित. चोर हुआ है छोड़ ..गए.. हो.. तन्हा. जबसे। बंद हुआ चिड़ियों का चहकना छोड़ दिया गुलशन ने महकना आंखे .. दरियां.. बन .. गई दूर... हुए ..हो.. जबसे.. हमसे। तू ...जबसे ...है.. रूंठ.... गया पर्वत.. का.. झरना .. सूख गया बंद हुआ.. बरगद का बड़कना चले ...गए ..हो .यारा... जबसे । तुमको... निगाहें ...ढूंढ़ ..रही हैं मिलन आश में झूम रही हैं अा जाओ तुम बन कर पुर्वाई आंखे निर्झर बरस रही जाने कबसे।
मैं हिंदी हूँ
कहने को तो मैं हिंदी हूँ देखो मुझे मैं कैसे जिन्दी हूँ। कहते हैं हिन्द देश के वासी हम हैं हिन्दी भाषा के भाषी। कुछ सनातनी करते हैं संवाद यहां रक्षक हैं वो मुझ भाषा के भाषी। कहने को तो आज हर जुबां पे होगा मेरा नाम पर बहुभाषी खा गए देखो कैसे मेरा हर इक काम। लाचार सी हो गयी हू मैं गंवार हो गया आज मेरा भाषी अंग्रेजी बोलने वाला हो गया आज यहां कैसे मधुर भाषी। कहने को तो मैं राष्ट्र भाषा हिंदी हूँ कैसे बताऊँ आपको कैसे अब मैं जिन्दी हूँ । सटीक सुलभ सौम्यता हैं मुझमें भावों की अभिव्यक्ति की अनोखी विधा हैं देखो मुझमें। कुछ उलझी कुछ सुलझी सी अनजान सी हूँ मैं तुझ इन्डियन की दुनिया में पहचान सी हूँ मैं। जान के मुझको इतना अब तुम्हीं बताओ कैसे मै जिन्दी रहू?? तुम प्यारों की भाषा कैसे मै हिन्दी रहू??
जय हो भारत भाषा
सदियों से दासता की बेड़ी पड़ी रही पर तू स्वाभिमान से हमेशा अड़ी रही। उर्दू , फ़ारसी और अंग्रेजी के आगे तू सीना तानकर खड़ी रही। असंख्य भाषाओं के उपवन में तू बहन सदा ही बड़ी रही। अहिंदी भाषी राज्यो में भी तू संपर्कों की भाषा बनी रही। कभी नागरी , कभी कौरवी कभी बनकर बोली खड़ी रही। मुंशी , महादेवी की जिहवा से तू कल कल सरिता सी बही रही। नाथ साहित्य से अब तलक तू अपने पांवों पर खड़ी रही। जय हो जय हो जय हो हे भारत भाषा तू भारत भाल पर बिंदी बनकर जड़ी रही।
हिंदी दिवस
हिंदी दिवस की शुभकामनायें आओ हम सब मिलकर हिंदी भाषा को भावनाओं मे समाये l मिलजुल कर इसको सर्वोच्च शिखर पर पहुचाये ll ***** ***** ***** ***** ***** यह एक भाषा ही नहीं पूर्वजो की पहचान है l यह सहज़, सरल, मीठी और बहुत आसान है ll ***** ***** ***** ***** ***** ***** केवल भारत मे ही नहीं यह सब देशो मे भी अंगीकार हैं l बच्चे, बूढ़े, युवा सभी के लिए यह स्वीकार हैं ll ***** ***** ***** ***** ***** लिखने, सुनने, पढ़ने और बोलने मे भी ये मजेदार हैं l लगा तो अपनी कौशलता तो लगती ये लच्छेदार हैं ll ***** ***** ***** ***** ***** अग्रेंजी ने इसके ऊपर थोड़ी से धूल की परत चढ़ाई है l फिर भी हिंदी भाषा ने बहुत इज्जत कमाई है ll ***** ****** ****** ****** ****** हम तो हिंदी भाषा के बड़े दीवाने हैं l यह मेरे रूह मे बसती है ना ही यह मेरे लिए अनजाने हैं ll ***** ****** ****** ****** बच्चन, अटल बिहारी बाजपेयी, दिनकर ने इसके अलख को जगाया है l गांव, कस्बो, शहरों ही नहीं इसे महानगरों तक पहुंचाया है ll ***** ***** ***** ***** ****** आओ हम सब मिलकर यह बात जान ले l हिंदी से ही होगा समुचित विकास यह मान ले ll आओ हम सब मिलकर यह बात जान ले l हिंदी से ही होगा समुचित विकास यह मान ले ll ***** ****** ***** ****** ****** राज कुमार काँटी, मुसफ्फरपुर बिहार 14.09.2020
औरत
मैं हू अमृत रूपी जीवनदायिनी औरत l मैं हू सब जिम्मेदारियों को निर्वहन करने वाली औरत मैं हू निडर, निश्छल और साहसी औरत l मैं हू सब पर भारी पड़ने वाली औरत ll मैं हू जज्बातों से परिपूर्ण औरत l मैं हू मुश्किलों से निजात देने वाली मैं हू पूरे परिवार का पोषण करने वाली औरत l मैं हू जिंदगी को जिंदादिल जीने वाली औरत ll मैं हू कठिनाइयों से लड़ने वाली औरत l मैं हू दुश्मनो के दाँत खट्टे करने वाली औरत ll मैं हू समाज को प्रेरणा देने वाली औरत l मैं हू खालीपन दिलो को भरने वाली औरत ll
संगिनी
तेरे बिना ज़िन्दगी से नहीं कोई आस l ये जिद है मेरी की तू रहे हमेशा मेरे पास ll तुम मेरी आवाज़ की बन जाओ गीत l मैं बना रहा हू तुम्हारा सच्चा मनमीत ll तुम बन जाओ विशाल धरती तो मैं बन जाऊ खुला आसमान l इस दुनिया मे ना हो कोई जोड़ी अपने समान ll मैं सागर तो तुम उसकी अस्तित्व की जल कण l बहती तुम मेरे साथ हर छन -हर पल ll हम दोनों उपवन के दो मनोरम सुगन्धित फूल l खुद भी खिले, सबको खिलाये और रहे सदा कूल ll मैं तुम्हारा हंस तो तुम मेरी मोहक हंसिनी l मैं तुम्हारा सखा तो तुम मेरी संगिनी ll तुम मेरी शमा तो मैं तेरा परवाना l इस जहा मे मेरे जैसा कोई नहीं तेरा दीवाना हम हमेशा एक दूसरी की बनते है आवाज़ l यही है हमारा जिंदगी की खुशहाली का राज ll
तेरी औकात बता गया कोई
सोए हुए मेरे ख्वाबों में आ गया कोई मुद्दतों बाद मेरे जज़्बातों को जगा गया कोई। डूबे हैं कई बेगुनाह दरिया -ए- हयात में बहर-ए-तलातुम में भी किनारा पा गया कोई। भूख से हलकान है मजलूम तिरे आतिश-ए-शहर में गुर्बत में हक का निवाला भी खा गया कोई । घरों में कैद है जिंदगी फिज़ाओं में पसरा है सन्नाटा अकड़ना छोड़ दे अब, तेरी औकात बता गया कोई। ख़ामोश हैं बुत तो तानकर चादर सो गया खुदा भी मंजर -ए -तबाही में अपना ईमान दिखा गया कोई । यूं तो मोजूं है अर्श पे तिरे कदम-ए-मर्दुम-ए-कामिल मगर दिखाकर रुतबा , तेरी हस्ती मिटा गया कोई । वक्त-ए-अज़ल पर यह कैसा मंजर है ए- खुदा जिंदा आदमी का गोश्त जानवर खा गया कोई । टूटे हैं हौंसले मगर ख्वाहिशें जिंदा रख -ए-"योगी" दहश़त- ए - दश्त़ में भी रास्ता दिखा गया कोई l
"आजादी तु इतनी महंगी क्यों हैं "
आजादी की तलब सबको है, पर आजाद होना आसान नहीं। कीमत अनमोल हैं इस शब्द की, मिटानी पडती हैं अपनी मौजूदगी। गंवाना पडता हैं सब कुछ यहां पाने पर इसको, बचता कुछ भी नहीं।। तोड जंजीरे, काट बेड़िया चल ली मैं भी तेरे संग यहां प्यार बहुत है तुझसे सबको त्याग तेरे लिए यहां आसान नहीं।। ।। आजादी जिंदाबाद।।
किसान
माथे पे पगड़ी, गले मे गमझा और धोती पहनावा हो , जिसकी पहचान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ***** पौ फटते ही कंधो पे हल और साथ में हो बैल, जिसकी हो पहचान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll **** ***** ***** हाथों में हँसिया और ज्येष्ठ में गेहूं की बाली कटती, जिसकी हो पहचान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ***** काम करते जिसके स्वर्ण रूपी पसीने से भीगे हो परिधान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ***** गमझे में लपेटी रोटी, गुण और मट्ठा से खेतो में जो करता हो जलपान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ****** आधे पाँव पानी में, भीगी हो धोती और जो रोप रहा हो धान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ****** ***** जिसके हाथ सने हो भूसे, खुदी, पानी से नाद में और परोसे मवेशियों को खान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ****** जो पूरी भारत की अर्थव्यवस्था की हो जबरदस्त शान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ***** जो सुबह और सायं होते ही गाय -भैसों से दूध निकाले इंसान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ***** ***** जो तन, मन और अन्न से सबको पोषित करता रहता हो और जिसके लिये सरकारे बनी रहे अनजान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll ***** ****** ***** भले ही वंचित धन से पर जो भरा हो जीवन ऊर्जा से और हो निष्ठवान l वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll
नया उजाला
कुछ ख्वाहिशें है दिल में, अरमान भी बड़े है, पाने को उनको , उस डगर पर चल पड़े है.... वक़्त कुछ लगेगा, सब्र तो करना पड़ेगा, राह ना होगी आसान, पथरीले रास्तों पे चलना तो पड़ेगा..... मिल जाएगी मंजिल , बस तू खुद को रुकने ना देना, ठिठक भले ही जाए कदम, पर उन्हें थमने ना देना... फिर होगा वो उजाला , खुशियों के सूरज का ऐसा, पा जाएगा वो मुकाम, खुली आंखों से देखे ख्वाबों में देखा वैसा।
मेरी माँ
माँ तुमने अपने रक्त से नौ महीने गर्भ मे सींचा l तप जैसा रहा ये दिन तेरा, फिर लौकिक संसार मे मुझे खींचा l किये भरण -पोषण तूने बहुत जतन से मेरा l मैं, मैं ना रहा बस बनता गया छाया तेरे ll कितनी श्रम करके पहले उंगलियों को पकड़कर चलना सिखाया l लोचन मे लगे कीचड़ को अपने साड़ी के फॉल से साफ जो कराया ll तेरे हमेशा साथ रहने की इच्छा मे, पीठ पर बिठाकर सिलवट पे मसाला भी पिसा l फिर भी ऐसी कोई जिद नहीं जो तूने भी उसे भरपूर ना जिया ll कभी अपने हिस्से का मीठा तो कभी आम देकर, मुछे अपना जीभ -रस भी दिया l कभी हंसा तो पुलकित हो गयी, ज़ब रोया तो दिलासा भी दिया ll मेले मे जाने के लिये तूने अपने हाथों से मुझे खुद ही सजाया - सवारा l मेरा लाडला देखो हैं कितना हर्षक, ये पूरे मोहल्ले को पुकारा ll तेरे हाथों को तवे पे जलते देखा हैंl फिर सरसों के तेल के साथ उन्ही को मलते देखा हैं ll माँ तूने बहुत ही दुःख झेले है l पर कभी भी एक आह तेरे नहीं किसने देंगे है ll माँ तेरी गोद तो सुनहला बिछौना हैं l दुःख को हरने वाला और शांति देने वाला प्यारा खिलौना हैं ll माँ तेरे बिना तो मेरा क्या, सबका अस्तित्व ही सुना l मैं तुझे हमेशा पुजू श्रदा से, हैं मेरी यही कामना ll
वो गांव और वो गलियां
वो गलियां जिसमे बचपन बीता l वो गलियां जिसमे दोस्तों से जीना सीखा ll वो गलियां जिसमे खपरैल के घरों से गिरते बारिश के पानी से नहाया l मौजों की टोली के साथ उस दिन को यादो की बारात से सजाया ll गांव की पगडंडिया थी और पुराने साईकिल की सवारी l पीछे पीछे बच्चों की उन्मुक्त टोली और हमारी होशियारी ll बुजुर्गो के स्थायी भाव और गोल घेरे मे हुक्का था l ये सब देख हम सारे बच्चों का दिल हक्का -बक्का था ll चाची और बहनो का गोबर से सना हाथ था l जगह -जगह गलियों की दीवारों पर उपलों का ठाठ था ll जाड़े के दिनों मे गोल आग के घेरे मे छोटे से बड़ो का जमावड़ा था l कभी किसी का हाथ सिक रहा था तो कभी पिछवाड़ा था ll कभी किसी की बारात आयी तो सब बैठे गए पत्तल पे खाने l कोई कहे पूड़ी और दही से तुझे अभी और हैं खाली पेट को आजमाने ll गाँव और उसकी गलियां ही तो हमारी पहचान हैं l हम भले कही बस जाये पर मूल मे तो यही हमारी शान हैं ll
गीत
" गीत" - अवध में राम आए हैं हर्षित है सारा ही संसार अवध में राम आए हैं अवध में राम आए हैं मेरे भगवान आए हैं। काटकर सदियों का वनवास पुन: . सियाराम .आए. है । भरत है मिलने को आतुर लखन संग हनुमान आए हैं । छवि है मनमोहन वाली सभी के हिय में समाए है । सरयू के पावन घाटों ने गीत मंगल के गाए हैं। सजे हैं सारे घर और द्वार देवों ने पुष्प बरसाए हैं । आज मंदिर के मुहूर्त पर मोदी संग नाथ आए हैं। उमंग में नाच रहे नर नार प्रजा ने दीप जलाए हैं।
उठ जाग और अब चल
घोर निशा में निंद्रा सी छाई है, कर्म रेखा इस तरह मुरझाई है | चारों तरफ घोर अंधेरा, लगता ! यह तो निराशा की परछाई है || क्या मेरे दिन भी चले गए, क्या किस्मत की अंगड़ाई है? क्या मेरे दिल में जंग बहुत, क्या मेरी ही लापरवाही है?? क्या मैं दौड़ा नहीं या दौड़ नहीं मैं पाया, क्या मैं सोचा नहीं या सोच नहीं मैं पाया? क्या मैं था दरिद्र या खुद को दरिद्र बनाया, क्या मैं था असफल या खुद असफल बनाया?? दिन कहीं नहीं जाते, किस्मत नहीं है रुठी, अंधेरा मिटेगा, निराशा हारेगी, थोड़ा लगा बल | तेरी लापरवाही है, कर उठा, तब मिले फल | उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल || तब तू दौड़ा नहीं, तब तू सोचा नहीं, खुद को दरिद्र बनाया, असफल कहलाया | है आगोश, कर खुद परविश्वास, तब होगा हल, उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल || मेहनतकश लोगों ने किस्मत को भी नहीं माना, जीत गए दुनिया सारी, प्रतिभा का नहीं बहाना | कर शुरुआत आज ही, आएगा नहीं कभी कल, उठ जाग और चल ,गुजर रहा तेरा पल पल ||
औसत इंसान
मत बन "औसत " इंसान अपने कर्मभूमि से l नित लड़ अपने आप से, तू छोड़ आरामदेह दायरा अपने आसन्न से ll ***** ***** ***** मत बन "औसत "इंसान अपने जन्मभूमि से l फहरा पताका सफलता का गगन के आलोक से ll ***** ***** ***** मत बन "औसत "इंसान अपने रंगभूमि से l खिल उठ उत्तम कलाकार रूप मे और कर मंचन हर खुश दिल से ll ***** ***** ***** मत बन "औसत " शिष्य अपने पुरुषार्थ से l रेंग चींटी तरह पर सिद्ध कर अर्जुन के गांडीव की तरह से ll ***** ****** ****** मत बन "औसत "नियंता अपने हाव -भाव सेl कर सबको हत प्रभ अपने सहज़ बुद्धि के चाव से ll मत बन "औसत " माता -पिता अपने स्वाभाव से l कर उत्कृष्ट लालन -पालन अपने ही चातुर्य से ll ***** ***** ***** मत बन "औसत " सुत अपने ही कार्य से l साबित हो श्रवण जैसा अपने ही पुण्डाय से ll ***** ***** *****
रक्षाबंधन दिवस
बहना ने भाई के कलाई मे दुलार बांधा हैं l भाई ने बहना के लिए खुशी का संसार लाया हैं ll ***** ***** ***** बहना ने भाई से रक्षा का सौगात माँगा हैं l भाई ने बहना के लिये प्राण त्यागा हैं ll ***** ***** ***** बहना ने भाई के लिये ईश से लम्बी उम्र का सौगात माँगा हैं l भाई ने बहाना के लिये अपना जज़्बात त्यागा हैं ll ***** ***** ***** बहना ने भाई के लिये तरक्की का प्रभु से उपकार माँगा हैं l भाई ने बहना के लिये अपना सारा खजाना न्योछावर करा हैं ll ***** ***** ***** बहना ने भाई से कुछ समय उधार माँगा हैं l भाई ने बहना के लिये दिन अपना लुटाया हैं ll ***** ***** ***** "बस यू ही भाई -बहन और पूरे भारतवर्ष के जनवासी अपने स्नेहिल, कृपालु ह्रदय से जीवन पर्यन्त एक दूसरे का खयाल रखते रहे और रक्षाबंधन दिवस की सार्थकता युगो युगो तक सिद्ध करते रहे l ***** ***** *****
बहन के नाम भाई की पाती
तुम्हे दुनियाँ की सबसे खूबसुरत मै मानता हूँ , तुम मे ही अक्श माँ का मै ढूंढता हूँ ! याद आती है तेरी बचपन की शैतानिया मुझे, उस बिछुडे़ बचपन को अब भी दिल मे, मै संभालता हूँ !! तू पिटती थी माँ से और रोता मै था, अब भी तेरी चोटों पर मरहम की पट्टी मै बांधता हूँ !!! तुमसे ज्यादा कोई जान नही पाया मुझे अब तलक, इसलिए हर रक्षाबंधन पर तेरी राखी मै बांधता हूँ !!!! तू रूंठने की वो आदत भूली नही है अब तलक, मग़र अजीब़ है यह बंधन तुमसे हर बार मै हारता हूँ !!!!! ग़र कुछ मतभेद है तो सुलझा लेंगे गले लगकर , आ जाओ रक्षाबंधन पर लो फिर माफी मै मांगता हूँ !!!!!!
जीवन कर्म युद्ध
रोज उठते हैं और निकल जाते अपने कर्मयुद्ध में l चेतन और अवचेतन मन से लग जाते अपने हस्त सिद्ध में ll ***** ***** ***** नहीं लगाने देते आलस को सेंध अपने तन मन में l झोक देते है अपने को पूरे मनोयोग से समयचक्र में ll ***** ***** ***** मन में रहता हैं कुछ ऎसा सुन्दर, साहसी, दयालु खयाल l एक से एक ग्यारह होते हैं और देश का मान बढ़ाते हैं प्रतिपाल ll ***** ***** ***** करते समाज के विकास में सहभागिता लेकर सबको साथ l चलते हैं अकेले पर मिलता जाता है सबका हाथों में हाथ ll ***** ***** ***** सभी को देना चाहिए अपने स्तर और सामर्थय से देश हित में योगदान l तभी तो अपना देश बनेगा एक आदर्श देश और महान ll ***** ***** ***** फिर एक बार कहलायेगा हिन्द, सोने की चिड़िया l और हरेक हिन्द जन के चेहरे पे होगी प्रशांत ख़ुशी की दुनिया ll ***** ***** ***** लोग करेंगे पडोसी और सगे सम्बन्धी की भी चिंता l जो बन पड़ेगा वो करेंगे और ना करेंगे कभी निंदा ll ***** ***** ***** "स्नेहिल राज " काँटी, मुजफ्फरपुर
संगिनी
तुझको देख के आता हैं करार l मैं तुम्हारा और तुम हमार ll चाहता हू तुम्हें बहुत और दिल से तुमको आभार l सुनती हो तुम मुझे सादगी से और नहीं करती कभी प्रतिकार ll हमेशा रहता हैं तुम्हारे आलिंगन का इंतज़ार l तुम्हारे छूवन से ही पुलकित होता शरीर हजार बार ll तुम मुझे तहे दिल से करती हो स्वीकार l यही तो वो बात है जिससे मुझे भी नहीं इनकार ll तेरे काले घने केश और तुम्हारा श्रृंगार l महसूस कराते ऐसे जैसे रजनीगंधा के खुशबू की बहार ll कपोल पर सजती लाली और सजल नयन मे दिखता प्यार l मै भी तेरे सजदा करू और खूब करू तुझसे प्यार l मै भी तेरे सजदा करू और खूब करू तुझसे प्यार ll
सावन
सावन का मौसम लाता है खुशियाँ का बहार और होता रंगीला l सजा होता है इंद्रधनुष के रंगों से और लगता सजीला ll ज़ब चलती मस्त हवा और तरुओं की पत्तियाँ लहराती एकाकार l बादलो के श्वेत स्निग्ध झुण्ड बहते, जैसे करते आपस मे हो बहुत प्यार ll खेतो मे दिखते बहुत सारे हँसते और मुस्कराते कामगार l सहज़ ही यह सबको महसूस कराते, हम ही है देश की अर्थव्यवस्था के आधार ll सावन मे पथिक पसीनो से तर बतर होकर भी रहता है ऊर्जावान l यही तो है सावन का कमाल जो सबको रखें दिल से नौजवान ll लाता है सावन बहुत सारे मेले और तीज जैसा त्यौहार l सभी देवर मस्ती करें अपने भौजाई से और लाये परिवार मे उमंग और बहार ll सावन मे ही हरेक सोमवार का मान बढे और मंदिरो मे भीड़ लगे अम्बार l नायिकाएं सजे धजे और रिझाये अपने प्रेमी को बारम्बार ll सावन का मौसम लाता है खुशियाँ का बहार और होता रंगीला l सजा होता है इंद्रधनुष के रंगों से और लगता सजीला ll
रह हमेशा तू जोश मे
ना सोच की क्या हो रहा, रह हमेशा तू जोश मे l कर सबके हौसले बुलंद, और रह हमेशा होश मे ll कर सुकर्म निरंतर, पूरे मनोयोग से l जिससे सिद्ध हो जन्म सार्थक, इस लोक मे ll आना जाना तो एक चक्र हैं l पर सार्थक सिद्ध होना सबके लिये, एक फक्र हैं ll सूरज नहीं बन पाए तो कोई बात नहीं l दीपक बने जरूर, इसका रहे ध्यान हमें ll जीते खुद और जिताये भीl जिए खुद और जिलाये भी ll मंजर बनाये अलौकिक सा l जिसमे सब आनंदित हो सम्पूर्ण सा ll दुखो के लिये सोख्ता बन जाये l ख़ुशी के लिये बहार लाये ll हर एक को करें अंगीकार l विधाता ने भी कहा हैं, सबको करो स्वीकार ll विधाता ने भी बोला हैं सबको करो स्वीकार ll
काली घटा का नज़ारा
काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा गर्मी से हुआ छुटकारा खिला तन बदन हमारा सूर्यदेव का खेल रचा था , इंद्रदेव का जवाब करारा काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा कोयल, मोर शोर मचाये ,गाये बुल बुल तराना काली घटा का नज़ारा , देखो देखते लगे प्यारा प्यासी धरती पी रही ,पेड़ो को मिला छूटकारा काली घटा का नज़ारा देखो देखते लगे प्यारा काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा गर्मी से हुआ छुटकारा खिला तन बदन हमारा
अग्निकलम
मेरी आज है तुम्हे पुकारती, उठो,जागो हे वीर धरा के भारती ! उठा शस्त्र......., कर भक्षण ...... संभाल गांडीव......., कर तांडव ...... रचा संग्राम. ......, कर सर्वनाश........ रण की इस बेला मे, स्वयं महाविनाशक है तेरा सारथी ! उठो ,जागो हे वीर धरा के भारती !! जब पार हो जाऐ संयम की पराकाष्ठा, रिपू के प्रहार से छिन्न-भिन्न हो हमारी आस्था , तब शेष नही रहता कोई रा्स्ता, स्वयं निर्णय करो ,त्यागो दिल्ली की दांस्ता, अब छोड़ो धवल पौशाकों से वास्ता, स्वयं भारती आज है तुम्हे पुकारती उठो, जागो हे वीर धरा के भारती !!! कब तक दूध पिलाओगे, इन आस्तीन के सांपों को, जिन्दा कब तक रखोगे, इन दहशतगर्दों के पापों को, वक्त आ गया है, खत्म करो इन चंगेजों के नागों को, यह वीर प्रसूता धरणी है ,अन्धे राजपूत की शक्ति से, दुश्मन के शीश उतारती, उठो, जागो हे वीर धरा के भारती !!!! हे नृप नरेन्द्र अब तेरी चुप्पी, खंजर सी चुभ जाती है जाग ,नही तो जनगंगा , खड़ग उठाकर लाती है, इस वीर धरा के वीरों को, कायरता कब भाती है, रण करो या मरण करो...., रणभेरी की उतारो अब तुम आरती !!!!!
शिव
मै गिर कंद्रा में रहने वाला बंधन मुझे स्वीकार नहीं मै भष्म भभूत लगाने वाला चंदन मुझे स्वीकार नहीं । रूद्र भूत गणादि परिजन मेरे गिर वनवासी है स्वजन मेरे मै शमशानों में रहने वाला नंदन वन मुझे स्वीकार नहीं । सिंह शावक सब मेरे साथी नंदी नाग मयूर और हाथी मै व्याघ्र चर्म पहनने वाला रेशमी वसन मुझे स्वीकार नहीं। दिग दिगंबर सारा मेरा अवनि अंबर प्यारा मेरा मै कंकड़ पत्थर पर सोने वाला कंचन मुझे स्वीकार नहीं ।
बाबा नागार्जुन
निशा के मध्य प्रहर में दरवाजे की घंटी बजी किसी अनहोनी की आशंका में धड़कन हृदय की बढ़ने लगी कंपकंपाते हाथों से जब खोला दरवाजे का कुंडा तो सामने खड़ा था मेरे कृषकाय काला सा बूढ़ा लाठी का सहारा लिए मुझे वो रैबारी सा लगा क्षुधा मिटाने निकला असहाय भिखारी सा लगा लंगोटी बांधे पर धड था नंगा उभाने पैर कंधे पर था एक गमछा टंगा धकियाते मुझे अन्दर घुसा बड़बड़ाते मुझे हड़काने लगा क्या मखमली गद्दों पर सोने शहर आए थे भूल गए तुमने भी बचपन में ढोर चराए थे छप्पर की छान टप टप टपकती थी ढह न जाएं मिट्टी की दीवारें कहीं इस चिंता में सारी रात गुजरती थी भले ही पढ़ न पाई तेरी मातृजाया पर तुम्हे तो पढ़ाया था बेचकर गहने मां ने मातृधर्म निभाया था खानी पड़ी थी ठोकरें पिता को भरने तुम्हारा उदर चबाने पड़े थे चने ताकि जीवन जाए तेरा सुधर भूल गया तू गरीबी से तिल .. तिल ... मरता.. था घुप्प अंधेरी रातों में घासलेट के दीए से पढ़ता था माना कि निज परिश्रम से पाया... है .....तुमने.... यह.. . मुकाम पर तू "मै" में समा गया फिर कौन करेगा निर्धन वंचितों के काम वातानुकूलित भवन में तू बन गया मूढ़ लिखने लगा मादक तन की बातें गूढ़ मैंने ऊंची आवाज में पूछा तुम हो कौन मुझे समझाने वाले बिना बुलाए मेहमान बनके मुझे मीठी नींद से जगाने वाले प्रत्युतर में उसने झिड़काया रे" ! मूर्ख मै हूं "बाबा" बाबा.......... हां तुम्हारा बाबा पर मेरे बाबा तो मर गए भवसागर से तर गए हां मै तन से बेशक मर गया मगर जिंदा हूं किसान की भूखी आंतडियों में श्रमिक की कुदाल और फावडियों में मेरा बचा हुआ काम अब तुम्हे करना है लोकतंत्र में उग आए जाती धर्म और क्षेत्रवाद को जड़ ..से... खत्म... करना.. है फिर लाठी टेकते टेकते वो चले गए गहरी कंदराओं में गिरने से मुझे बचा गए कलम चलने लगी होने लगा सृजन भ्रम मिटने लगा सुलझ गई उलझन जगाने आए थे मुझे स्वयं बाबा नागार्जुन ।
गुरु पूर्णिमा
जीवन चक्र के इन समस्त गुरुजनों के शुभाशिष के साथ गुरु पूर्णिमा की अनन्त शुभकामनाएं। सफर- ए - जिंदगी में आलम यह है जनाब, कदम दर कदम देखा गुरुजनों का सैलाब। प्रथम गुरु बन माता ने निभाया अपना फर्ज, ना उतार पाएंगे कभी पिता की सीख का कर्ज। विद्या के मंदिर में जा कर पाया हर तरह का ज्ञान, ऐसे शिक्षकगणों को करेंगे हम सदा यहां प्रणाम। वक्त के बहाव में दिखे रिश्ते नाते दोस्त दुश्मन बड़े महान, सीखा गए जीवन पथ की यथार्थता का वे ज्ञान विज्ञान। धरती माता ने भी क्या कम निभाया अपना धर्म, पालपौष के आंचल में हमको, सिखाया अपना कर्म कैसे कहूं गुरु एक है पल-पल देखा दूजा गुरु महान, आखिर देखा चित्तवृत्ति में झांक के तो दिखा *आदि योगी* गुरु महान।
Girl just be the way you are!!
When people tell you You are not beautiful, You should say You are no less than fool, They say-you should change yourself You think-why i can't be myself Dear they came straight out of the bar, Girl just be the way you are They do comments On your dark skin, Telling you that It's good to have a light tint, They say-put some cream on your face You think I don't wanna be in this race Tell them loud that you are happy with your scar, Girl just be the way you are They tell you Look at your fat, Keep judging you You should keep your belly flat, They say-neighbour's daughter is so lean You think-how can you be so mean Believe me dear you are a superstar, Girl just be the way you are.
वक्त की कमी या समय का बहाना
सबके लिए सबको समय मिल जाता है आदमी जब चाहे तब एक मिनट मिल जाता है। नहीं होता कई बार इतना जरूरी कोई या कुछ इसलिए समय का कुछ इस तरह अभाव हो जाता है। दस्तूर यह जमाने का क्यों जाया करें वक्त कोई अपना शिकायतों का भी इस तरह आजकल प्रभाव कम हो जाता है। उम्मीदें फिर इस कदर हावी हुई दो बोल बतलाने की पर------भुलाने वाले को क्यों - कहां- कौन इतना याद आता है। हकीकत जान के खुद आदमी कितना सोच में पड़ जाता है क्यों करता है ऐसा वह, अपनी रूह से फिर बतलाता है।।
दादी मां
मां नहीं थी मेरे, दादी ने पाला मुझको लिख रही हूं दादी मां देके आज हवाला तुझको, बेटी थी मैं, बेटा सा मान, संभाला तुने बंधन तोड़ समाज के आगे बढ़ाया तुने, बचपन में तेरी वो डॉट आज बहुत याद आती है रुलाकर हंसाने की तेरी कला आज बहुत रुला जाती है, निकल जाती थी जब मैं खेलने सतोलिए लड़कों के संग, कहती थी तु अच्छे नहीं है लड़कियों के लिए यह ढंग कर जाती है आज तेरी वही बातें मुझे फिर से तंग याद बहुत आती है तेरी मैया देख जमाने के ये रंग तब ना मानती थी मैं तेरी ये सीख भरी बातें मुस्कुरा कर फिर तू टाल देती थी मेरी वो लड़कपन की शरारतें, अपनों से लड़ लड़ के तुने खूब पढ़ाया मुझको अच्छी से अच्छी शिक्षा दिला जीने के काबिल बनाया मुझको, तु तो थी अनपढ़, संस्कार दे गई नायाब मुझको पढ़ी-लिखी आज की "माताएँ "कैसे हिसाब देंगी आज तुझको।
यादों का सिलसिला !
छाए थे बदरा इंद्रप्रस्थ के आसमान में हाथो में कंगन और झुमका पहना था तुमने कान में बैचैन सी टहल रही थी तुम मेरे इंतज़ार में तभी बारिश का झोंका आया और तुमने थाम लिया था हाथ मेरा , चूम लिया था माथा मेरा उस बंद मकान में। आज फिर चल पड़ा यादों का सिलसिला पुरवाइयों के संग जब बरसती बूंदों में रोम रोम में बस गई थी तुम्हारी सांसो की गंध। मगर मिलकर भी तुमसे मिलन बाकी रहा पिला न सका मय तुमको मै कैसा साकी रहा समंदर में मिलना दरिया की फितरत है इक दिन बहा लूंगा तुझे अपनी मौजों के संग मेरा ये वादा तुमसे बाकी रहा
ज़िन्दगी से निराश ना होना
ना हो उदास, ना हो निराश, सुन्दर हैं ये ज़िन्दगी l यह जीवन हैं बहुत न्यारा, ये हैं ईश्वर की दी हुई बंदगीl लाख आये बाधाएं. मत छोड़ो अपनी आस l रखो धीर और करो अच्छा और करो अपने पे नाज l हम सभी अपने आप मे है सबसे अलग और बहुत हैं खास l इसलिए किसी भी परिस्थिति मे ना हो उदास l ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका ना हो कोई उपाय l बात करो दोस्तों से, और परिवार से, मिल जायेगा समस्या का सदुपाय l इससे भी कुछ ना बन पड़े तो करो अपना पसंदीदा एक काज l फिर भी ना बने बात तो लौट आओ बचपन मे ही आज l सभी से करता हु अनुनय, विनय, ना हो ज़िन्दगी मे कभी भी उदास l जियो हमेशा जिंदादिली से और बनाये रखो मुख पर हमेशा मधुहास l ना हो उदास, ना हो निराश, सुन्दर हैं ये ज़िन्दगी l यह जीवन हैं बहुत न्यारा, ये हैं ईश्वर की दी हुई बंदगीl "स्नेहिल राज " 9.10.PM, 25.06.2020 काँटी, मुजफ्फरपुर बिहार
हां ,मै विद्रोही हूं
मै वामपंथी नहीं हूं लेकिन लिखता रहूंगा धन कुबेरों के खिलाफ शोषण की प्राचीरों के खिलाफ। मेरा लेखन जारी रहेगा सृष्टि में प्रलय होने तक नवोदित कवियों के रूप में गरीबों की भूख के लिए । मै विषधर नहीं हूं परंतु उगलता रहूंगा ज़हर विश्व में व्याप्त ...... असमानता के खिलाफ घृणा द्वेष ईर्ष्या क्रोध और मानवता के खिलाफ जाति धर्म ........ और नस्लवाद के खिलाफ विश्व बंधुत्व के लिए । मै नास्तिक नहीं हूं किन्तु बना रहूंगा नास्तिक देवताओं के खिलाफ इशा मूषा पैगंबर के खिलाफ पतित धर्मगुरुओं के खिलाफ खुल न जाएं मंदिर के कपाट जब तलक सर्वजन सर्वहिताय के लिए । मै विद्रोही हूं ठीक सुना आपने हां ,मै विद्रोही हूं करता रहूंगा विद्रोह अनवरत भय भूख भ्रष्टाचार के खिलाफ दंभी निरंकुश सरकार के खिलाफ ढोंगी लोभी मक्कार के खिलाफ साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ पक्षपाती व्यवस्था के खिलाफ अन्धविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ समानता और मानवता के लिए । मै लड़ता रहूंगा सतत् सरित गिर पहाड़ के लिए आधी आबादी के अधिकार के लिए मजबूर और लाचार के लिए खाद्यान्न और आहार के लिए पानी और पवन के लिए जंगल और वन के लिए निर्धन और बहुजन के लिए छल कपट शमन के लिए चिर स्थाई सर्वमंगल के लिए ...।
तु ढूंढती मुझको
तु ढूंढती मुझको, मैं ढूंढती तुझको हम दोनों मिलकर खोज लाते हैं चल आज उसको, तु समाई मुझमें, मैं समाई उस में राब्ता है हमारा जिससे ,वह ठौर खोजता हैं आज किसको, रोज देखती तु मुझको, रोज देखती मैं उसको सकूँ दोनों का है ,जहाँ वो देखता किसको, चैन तुझे भी नहीं, सकूँ मुझे भी नहीं, गुफ्तगू कर हम बजम में पूछते हैं चल आज उसको तु सोहबत है उसकी मैं मोहब्बत हू उसकी तु समझती हयात अपनी, मैं मानती रूहानियत उसको बता तेरी रजा उसको, क्या सजा देगा वह मुझको शिद्दत से पाने की तलब हमारी चुरा ना ले रब.... कहीं उसको "रूह और मेरी परछाई"
आँखे
दिल से दिल मिलती है ये प्यारी आँखे कभी दुश्मन को दोस्त बनाती है ये आँखे। सबको अपनी उँगलियों पर नचाती है ये आँखे , खुद की नज़र में गिराती और उठाती है आँखे। कभी दिल की जुबान बन प्यार जताती है आँखे गम और खुशी में आँशु बहाती है आँखे । अंधकार से सदा हमें बचाती हैं आँखे ईश्वर का एहसास कराती हैं आँखे । न जाने रोज कितनी सारी खुशियां दे जाती हैं आँखे , पैदा होते ही खुलती हैं आंखें और संसार से विदा होते ही , बंद हो जाती है हमारी यह प्यारी आँखे , सचमुच ईश्वर का सबसे सुंदर उपहार आँखे , नमन उस प्रभु का जिसने हमें दिए प्यारी आँखे ।
माँ के लाल
भेजा अपने लालो को सरहद पे दुश्मनों को मिटाने को 1 ललकारा उनको कहा ओजस्वी वाणी से, वीरता अपनी दिखाने को l बोला हुंकार भर के आज अब तेरी बारी हैं l भारत माँ की रक्षा के लिये दूध की कीमत आज तुझे चुकानी हैं l लड़ना तुम डट के सीमा पे और भय से ना घबराना l एक, दो, चार नहीं कम से कम सौ दुश्मन मार के आना l ना सोचना घर परिवार के बारे में, ये देश हमारा हैं l इसी मिट्टी में पले बड़े हम, ये हमें जा से भी प्यारा हैं l लगाना पढ़े जा की बाजी, तो भी तुम ना पीछे हटना l किसी भी कीमत पे, शत्रुऑ के तुम दाँत खट्टे करना l अगर वीरगति को प्राप्त हुए तो भी ना होंगी आंखे मेरी नम l मै ही नहीं पूरी देश की माताए करेंगी तुझे शत शत नमन l मै ही नहीं पूरी देश की माताए करेंगी तुझे शत शत नमन l "स्नेहिल राज " उप महाप्रबंधक -NTPC काँटी, मुजफ्फरपुर बिहार
हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं
ए पथिक ना फेंक पत्थर मेरे दिल के समंदर में क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं दर्द इतने छुपाए सीने में कि मेरी मुस्कुराहट भी एक दर्द नज़र आएगी अंधेरे मे खड़ा हूँ इस कदर कि मेरी परछाई भी मेरे साथ ना चल पाएगी दूसरों के ज़ख़्म मिटाने के लिए ज़ख़्मी हुए क्या ये बहती हवा मेरे ज़ख़्म सहलाएगी ज़िंदगी से हुए खफा क्यों इशारा मौत का मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं प्यार की धुंधली रातों में कुछ इस तरह हम खो गये किन हाथों से हम धुन्ध हटाएँ जब खुद ही धुन्ध हम हो गये हवा बन साथ मेरे कुछ इस तरह वो रहती है बाहों मे ना भर सकूँ पर सांसो मे वो रहती है पर इस अधूरे अहसास से दिल को सुकून मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं आँख छलकती गागर हुई दिल समंदर हो गया एक क्षितिज सा ख्वाब देखा जो अधूरा रह गया दिल के आलम दर्द बन कब आँख तक भी आ गये जो ना शब्द मेरे कह सके वो मेरे आँसू कह गये पर हर टपकती बूँद को सहारा सीप का मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं
ऐसी अपनी चाह
मुश्किल का मंजर है ये , कांटो भरी है राह , जीत जायेंगे एक दिन ऐसी अपनी चाह। समुद्र का भंवर है ये, चुनोतियो की राह , जीत जायेंगे एक दिन ऐसी अपनी चाह। ताकतवर बहुत ह ये उठा ली हमने बाँह , जीत जायेंगे एक दिन ऐसी अपनी चाह। मुश्किल का मंजर है ये , कांटो भरी है राह , जीत जायेंगे एक दिन ऐसी अपनी चाह।
जीवन धारा
जब शुरू हुई ये ज़िंदगी माँ की गोद थी हर खुशी रो कर कह देता था मुश्किल ढक देती थी मुझ पर आँचल जब मैने धरती पर पाँव रखा पापा ने मुझे संभाल लिया कंधे पर बैठा कर दुनिया दिखला दी कहने से पहले हर ख्वाहिश पूरी की भाई के साथ जब कदम बढ़ाया अच्छे बुरे का फर्क समझाया भाभी ने आकर यादें सॅंजो दी घर के आँगन को नई कली दी बहनो की चिकचिक उनका दुलार भर देता है आँखे उनका वो प्यार बहते मंझधार में दोस्त मिले हर अच्छे बुरे में साथ चले अपनों से दूर यहाँ आया हूँ एक पल भी ना जी पाया हूँ बार बार छलक जाती है आँखे कर लेता हूँ इन से भी बातें जगती रातों से पूछा तो कहा, तेरी आँखे देख ना सोई हूँ बहती आँखो से पूछा तो कहा, तेरे दिल को देख कर रोई हूँ बहती आँखो, जगती रातों ने खुदा के दिल को यूँ सेज़ा अपनों की कमी ना खले मुझे इसलिए दोस्तों को भेजा
नेचर ये तेरा कैसा नेचर
रूप रंग कैसा है तेरा समझ ना पाया इसको कोई। नेचर ये तेरा कैसा नेचर माया इसकी जान न पाया कोई।। बन पेड़ यहां शीतल सी छांव नीचे तु बिठलाता। ना बदले मे कुछ कभी औरो से मांग करवाता। सेवा सा भाव देकर ना खुद पे तु इठलाता। अपना पराया ना भेद कर प्रीत जगत को तु सिखलाता।। कभी तू बन जानवर शिकार खुब कराता। दर्द पीर खुद को देकर गैरों का न दिल दुखाता। जंगल भी तुझसे मंगलभी तुझसे इस जीव जगत को प्रेम की राह दिखाता।। फिर तू बनता एक बुद्धिमान प्राणी अकड़ बहुत अपनी तु यहां दिखलाता।। इंसानियत के नाम पे कैसी हैवानियत तु यहां दर्शाता।। नेचर भी अफसोस है करता होगा अपनी ही कृति प़ें शर्माता होगा रो रो कर अपने अश्रु किसको दिखाता होगा।। लेकिन कोरोना के रूप में फिर तुने सबक दिया भरी हुई महफ़िल को किस तरह वीरान किया। समझा मानव को तूने सब आज यहां चिरकाली
कहानी कोरोना काल की
तुम्हें सुनाओ कहानी कोरोना काल की, प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।। उठी चिंगारी परे देश से आग लगाई जिसने पूरी दुनिया के शुरुआत हुई जब इसकी समझ ना आइ तब ये दुनिया के बिछ गए चारो ओर लासो के ढेर जब आदम जाति के तब आये ना कोई इसे बचाने उसके ही स्वजाति के सुनो कहानी ये लोकडाउन संग जनता के ढाल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल कीll1ll बड़े-बड़े हुक्मरान जब घबराए देख सच को भोकलाए ना दवा कहीं ना दुआ कहीं मंदिर मस्जिद सब बंद करवाएं देख विधना का खेल अजीब प्रकृति खूब मुस्कुराए कैद मानव को देख हर जगह पशु-पक्षी भी फस्फुसाए सुनो कहानी यह मानव सत्ता के सवाल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।। 2ll मौत के मौसम में धरती मां ने भी क्या कहर ढाहाया मचा कोहराम चारों तरफ रोटी रोटी को तरसाया देख विधि की ऐसी कयामत हर कोई दहलाया बालक बूढ़ों तक ना इससे यहां कोई बच पाया बात सुनो अब उस अदृश्य कोरोना के कमाल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।। 3।। दिन रात लगे योद्धाओं ने जगं जीत की ठानी विकट घङी मे जन-जन को देते वे दाना पानी देख नियति का खेल विज्ञान ने यह बात मानी छोड़ दे प्रकृति से छेड़छाड़ गर तुझे हैं जान बचानी कैसी कहानी ये 2020 के साल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।। 4।। घर बैठे शहजादो ने देखी मजदूरों की मजबूरी सृजन करता ये जिस भारत के, उनकी देखो कैसी ये लाचारी नंगे पैर नाप धरा को दिखाई उन्होंने सदाचारी रोते बिलखते खून से लिखी उन्होंने हुक्मरानों की कदाचारी सुनो जबानी उन मजदूरों की लंबी चाल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।। 5।। गजब कर दिया कोरोना ने, इंसानियत उसने सिखलायी बदल दिया विश्व वृक्ष को ऎसी आन्धी चलायी गिर गये बाहुबली सब अर्थव्यवस्था ऎसी चरमरायी बना दिया माहोल अब ऐसा होगी फिर से यहां लडायी सुनो कहानी अब इन देशों के कदम ताल की प्रकृति के रूद्र रूप विकराल की।।6।। सुनो कहानी धरती के इस सर्वमान्य ख्याल की। प्रकृति के विनाश काल महाकाल कीll
लॉक डाउन
२१ दिन लॉक डाउन सड़के पड़ी है खाली ! मेरे ड्यूटी जाने से , डर रही घर वाली !! बिजली हमें बनानी है, रुकना नहीं है घर पर! बेटा निकला NTPC ड्यूटी, पापा रास्ता देखे दिन भर!! बीटा पूछे कोरोना, अपने हर सवाल मे ! कोरोना तो फ़ैल रहा , प्लांट चले हर हाल में!! ३० दिवाली देख चूका, अब मौत का आगास है! इस कोरोना के आतंक से, डर रही धरा व आकाश है !!