Dheer



Dheer

An engineer by profession and mentor by heart

Fear Became Strength

What is the biggest fear in Indian society- Its Poverty? Or not knowing English language? “In the progressive and the acquisitive society not knowing English language is the biggest fear." Story of a Dheer Singh, who belong from far flung area in Rajasthan, “Jogipura” In his entire schooling journey he study in a Hindi Medium school where he learned the basic concept. His deep rotted educational background helps him to get admission in Indian most premier Engineering College NIT Kurukshe...

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Articles

Disability Could Not Stop

Most of the time we are hearing the stories of bad luck as a reason for failure. However when hard work and determination combines, even permanent disability could not stop a person from having success . In this story a person with disability took loan for his livelihood and started one small sho...

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Why to choose ITI

Why to choose ITI? If you are a class10 student and you are planning to pursue ITI courses. Don’t worry you are choosing a right career options. Now a day’s professional degree works more than getting academic degree in getting good jobs. Today Indian govt running various skill development progr...

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The Blind CEO, Bollant Industries, Defeat his fate by determination and hard work

This story is about a boy, who was wandering in the darkness of his own life and by his strong determination he reached the height of a sky. Shrikant Bolla Srikanth Bolla — a 19-year-old sophomore who is blind — recently realized a dream when he traveled to Hyderabad, India, to develop a co...

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Preparing kids for Schools after Coronavirus pandemic

The coronavirus pandemic is an unprecedented situation in modern times. It is hard to gauge the full impact that the situation is having on children and young people’s mental Conditions. Return to school is important but we are not sure who is having corona in school. It is very important to ma...

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Facts About UPSC

#आईएएस_परीक्षा_के_लिए_कुछ_तथ्य -------------------------------------------------- यह अक्सर कहा जाता है कि IAS परीक्षा को क्वालिफाई करने के लिए प्रतिदिन 16-18 घंटे गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है। एक धारणा यह भी है कि IAS परीक्षा की तैयारी के दौरान IAS उम्मीदवारों को किसी अन्य कार्यो...

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International Yoga day

The ancient science of Yoga is India’s great gift to the world. Glad to see more and more people adopting it. Amid stress and strife, especially with #Covid19, practicing Yoga can help keep the body fit and mind serene.

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Biodiversity is Essential for healthy earth

Biodiversity is the presence of different species of plants and animals on the earth. It is also called biological diversity as it is related to the variety of species of flora and fauna. Biodiversity plays a major role in maintaining the balance of the earth. But due to increasing population, in...

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Poverty is not a hurdle for the career

A small kid of a tribal village mesmerised when people of his village touching feet of an IAS Officer. The kid started focussing his studies with dedication and hard work. A decade later, He did his graduation in Mechanical engineering with a gold medal. He started teaching in An Engineering Co...

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There is no limit to Talent and Hardwork- Read about Shrikant Jichkar

There is always a debate, who is most qualified person in India. We can consider Dr Shrikant Jichkar as one of the most qualified and talented person in India . Shrikant Jichkar was born to a farmer in a Kumbi familynear Katol, Nagpur District. He had one of the biggest personal libraries in I...

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Poetry

कोरोना की विदाई

बादल उमड़ना भूल गए,  
धरती माता रो रही। 
कांप रही कोंख सभी,
दुनिया डग मग हो रही। 

शादी से पहले दुल्हन डरे,
मांग लिए कोरी कोरी।
जिंदगी के इस पड़ाव में,
यमराज खींच रहा डोरी। 

एक कमरे सिमटी दुनिया, 
ये कैसी चली बीमारी। 
बिना दिखे ही वायरस ये, 
मानवता पर भारी। 

मौज मस्ती भूल गए,  
दुख की आंधी तेज चली। 
राजा राजा लड़ रहे ,
लोग मर रहे गली गली। 

आया क्यों कहाँ से, 
इंसान तेरी सवारी। 
इस सूक्ष्म जीव की,
अब विदाई की तैयारी। 

बला बड़ी है, जतन करो, 
मत समझो इसे टली। 
मास्क लगाओ, हाथ धोवो,
काढ़ा की तो घुट भली। 
 
ज़हर घुला हवाओ में, 
साँस नहीं रुकने देंगे। 
लड़ेंगे, भिड़ेंगे, भगाएंगे 
प्रयास नहीं रुकने देंगे। 

वैक्सीन हमने बनायीं है ,
दवाई  और बना लेंगे। 
आस बहुत है, साहस बहुत है ,
प्रयास नहीं रुकने देंगे। 

तूने बेड बहुत लगवाए ,
माँ बहनो को खूब रुलाया। 
तेरे कहर से भी बच जायेंगे ,
प्रयास नहीं रुकने देंगे। 

बॉम्बे फ्लू भी आया था ,
प्लेग भी आया था। 
जब हमने हुंकार भरी , 
उलटे पाओ भागा था। 

जंग बहुत जीती है हमने ,
हमने सबको हराया है। 
कैसी अजीब जंग है  ये,
हमारा सह्ययं आजमाया है। 
 
तूने बहुत खेल लिया,
ये अब हमारा वार है। 
कितना भी तू जोर लगा ले , 
अब तो हम तैयार है। 

बाहें बहुत फैलायी तुमने ,
इम्युनिटी हमारा हथियार है। 
बच गए अगर हम तुझसे ये ,
हमारी जीत और तेरी हार है।
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विद्युत कर्मी

कट रही है ज़िन्दगी, जैसे,जी रहे वनवास में l
हम विधुंत कर्मी है, ड्यूटी करें हर सांस में।

हम फंसे इस जाल में, सब चिंता करते गांव में,
जिंदगी मानो ठहर गई है, बेडी जकडी पाँव में। 

सबकी  छुट्टी हो गई, बिजली ने पकडी रफ्तार, 
फिर भी लोग कहे, बैठा कर पैसा देती है सरकार। 

घर में राशन नही, फिर भी ड्यूटी जाते है, 
सारी दुकाने बन्द हो जाती, जब हम वापस आते हैं। 

माँ बाप सिसककर पूछ रहे,बैटा तुम कैसे खाते हो, 
जब पूरा देश बन्द है तो, तुम ड्यूटी क्यो जाते हो। 

यहाँ सबकुछ मिल रहा, झूठ बोलकर माँ को समझाते है, 
देश के लिये समर्पित जीवन, इसलिए ड्यूटी जाते हैं। 

सेना,शिक्षक,डाँक्टर नही हम, सम्मान नहीं हम पाते हैं,
हम तो विधुंत कर्मी हैं साहब, केवल अपनी ड्यूटी निभाते हैं  ।

Dedicated to NTPC Engineers
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जादू किताब

ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| 

100 खंड, 1000 उपखण्ड,  हजारो  पन्नो  की पोथी,
कर्मचारी के लाभ में ये हमेशा लगती क्यों थोथी | 
ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| 

नियम बहुत लिखे है लेकिन फिर भी लगे न पूरी, 
दिमाग हमने बहुत खपाया, अब भी समझ अधूरी | 
ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| 

कामगार हो या कोई विद्वान, समझ न सका इसकी विज्ञानं, 
ये कौन ऐसी पुस्तक है, जिसका  मैनेजमेंट करता गुणगानं 
ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है|| 

बिना एक अक्सर बदले ही ये कैसे नियम बदल जाता 
हर पंक्ति का मतलब है पर हमें समझ नहीं आता |
ये कैसी जादू किताब है, कैसे बनी इसका क्या है हिसाब है||
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उठ जाग और अब चल

घोर निशा में निंद्रा सी छाई है,
कर्म रेखा इस तरह मुरझाई है |
चारों तरफ घोर अंधेरा, लगता !
यह तो निराशा की परछाई है ||

क्या मेरे दिन भी चले गए,
क्या किस्मत की अंगड़ाई है?
क्या मेरे दिल में जंग बहुत,
क्या मेरी ही लापरवाही है??

क्या मैं दौड़ा नहीं या दौड़ नहीं मैं पाया,
क्या मैं सोचा नहीं या सोच नहीं मैं पाया?
क्या मैं था दरिद्र या खुद को दरिद्र बनाया,
क्या मैं था असफल या खुद असफल बनाया??

दिन कहीं नहीं जाते, किस्मत नहीं है रुठी,
अंधेरा मिटेगा, निराशा हारेगी, थोड़ा लगा बल |
तेरी लापरवाही है, कर उठा, तब मिले फल |
उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल ||

तब तू दौड़ा नहीं, तब तू सोचा नहीं,
खुद को दरिद्र बनाया, असफल कहलाया |
है आगोश, कर खुद परविश्वास, तब होगा हल,
उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल ||

मेहनतकश लोगों ने किस्मत को भी नहीं माना,
जीत गए दुनिया सारी, प्रतिभा का नहीं बहाना |
कर शुरुआत आज ही, आएगा नहीं कभी कल,
उठ जाग और चल ,गुजर रहा तेरा पल पल ||
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काली घटा का  नज़ारा

काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा 
गर्मी से हुआ छुटकारा खिला तन बदन हमारा 

सूर्यदेव का खेल रचा था , इंद्रदेव  का जवाब करारा 
काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा 

कोयल, मोर शोर मचाये ,गाये बुल बुल तराना  
काली घटा का नज़ारा , देखो देखते लगे प्यारा 

प्यासी धरती पी रही ,पेड़ो को मिला छूटकारा 
काली घटा का नज़ारा देखो देखते लगे प्यारा 

काली घटा का नज़ारा ,देखो देखते लगे प्यारा 
गर्मी से हुआ छुटकारा खिला तन बदन हमारा
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ऐसी अपनी चाह

मुश्किल का मंजर है  ये , 
    कांटो भरी है  राह ,
    जीत जायेंगे एक दिन
    ऐसी अपनी चाह।

           समुद्र  का भंवर है ये,
          चुनोतियो  की राह ,
          जीत जायेंगे एक दिन
          ऐसी अपनी चाह।

               ताकतवर बहुत ह ये 
               उठा ली हमने बाँह ,
               जीत जायेंगे एक दिन
               ऐसी अपनी चाह।

                     मुश्किल का मंजर है  ये , 
                     कांटो भरी है  राह ,
                     जीत जायेंगे एक दिन
                     ऐसी अपनी चाह।
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लॉक डाउन

२१ दिन लॉक डाउन
सड़के पड़ी है खाली !
मेरे ड्यूटी जाने से ,
डर रही  घर वाली  !!

      बिजली हमें बनानी है,
      रुकना नहीं है घर पर!
      बेटा निकला NTPC  ड्यूटी,
      पापा रास्ता देखे दिन भर!!

बीटा पूछे कोरोना, 
अपने हर सवाल मे !
कोरोना तो फ़ैल रहा ,
प्लांट चले हर हाल में!!

     ३० दिवाली देख चूका,
     अब मौत का आगास है!
     इस कोरोना के आतंक से,
   डर रही धरा व आकाश है !!
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Story Writing

Disability Could Not Stop

Most of the time we are hearing the stories of bad luck as a reason for failure. However when hard work and determination combines, even permanent disability could not stop a person from having success . In this story a person with disability took loan for his livelihood and started one small shop. After years of handwork he came up with a very famous retail store …”Vishal Megha Mart”. 
Ram Chandra Aggarwal was born into a common family. Even after several tries of his family could not even learn to walk well and became a victim of paralysis. However, he could walk with the help of crutches forever. The family members were worried about his future. But, something else was going on in Ramchandra’s mind. He decided that he would beat poverty at all costs and make a name for himself in the society.
For this, he first focused on his studies. Once his studies were complete, he started looking for a job, so that he could help the family with household expenses. It was not easy for him to get a job due to being a Divyang, but he continued. Sadly, despite all efforts, he did not get a job anywhere. It was a difficult time for Ramchandra, but he was not broken.
He decided that he would start his own business. For this, he took help from some of his friends and opened shop in 1986 by borrowing some money. This was Ramachandra’s first step towards success. After this, he did not look back. He entered the textile industry in 1994 after a photo copy shop. He tried his luck by opening a clothing shop in Kolkata’s Lal Bazar.
After doing similar work for about 15 years, in 2001-02, he laid the foundation of Vishal Retail. Visually, Vishal Retail grew and Ramchandra became a big name in the business world. In the journey ahead, he established the huge Megamart and thus became the owner of Crore Rupees Business. Ramchandra also saw a bad phase in his journey, when his company went bankrupt.
He even had to sell his company’s stock. Shri Ram Group had bought the stake of his company Vishal Retail. In this way her company survived the sale, but it was split in two. Ramchandra moved ahead with his wisdom and has once again started making his land in the market in the retail market. His company V2 retail market is one of the fastest emerging retail markets in India.
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पिता की जंग

खर्चा बहुत ज्यादा था और दुकान जवाब दे रही थी | जिस दुकान पर रोज ₹2000 की बचत होती थी,  वह दुकान  अब ₹200 की बचत भी नहीं दे पा रही थी |  बड़ी कंपनियां हमेशा छोटे दुकानदारों का नुकसान तो करती ही है,  पर एक सब्जी वाले का घर इस तरह से मदर डेयरी बर्बाद कर देगी यह सब्जी वाले ने सोचा नहीं होगा | 
 जब दो बेटे इंजीनियरिंग कर रहे हो और उस समय दुकान भी बंद हो जाए तब उस पिता पर क्या बीत रही होगी, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है | घर का खर्च कैसे चल रहा था, और इंजीनियरिंग की फीस के पैसे कैसे भेजे जा  रहे थे यह वह पिता ही जानता था |  लेकिन इस पिता ने मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी कभी हार नहीं मानी,  वह आज इस मदर डेरी से कैसे हार मान सकता था ,  और इस हार पर तो उसके बच्चों का पूरा भविष्य टिका हुआ था  | 
क्या सही है और क्या गलत  ! यह सोचे बिना , यह सब्जी वाला अपनी 25 साल पुरानी रेडी से एक पक्की दुकान वाले मदर डेयरी से कंपटीशन करने चल पड़ा | 

वह रोज सुबह जाकर मदर डेयरी के बोर्ड पर लिखे हुए भाव पढ़कर तो आता था, लेकिन वह खुद तो मंडी से भी इतना सस्ता सामान नहीं ला पा रहा था | 
अब उसके पास एक ही रास्ता बचा था ,वह था, आजादपुर मंडी से सब्जियाँ लाना |
55 साल की उम्र में वह मंडी जो कि 40 किलोमीटर दूर थी, जाना बहुत मुश्किल तो था, लेकिन विडंबना यह थी कि नहीं जाने से, मदर डेयरी के भाव पर सब्जी बेचना लगभग असंभव था | 

एक पिता ने 10 साल पहले छोड़ चुके अपने काम को फिर से शुरू किया , रात में 11:00 बजे सोने के बावजूद 2:00 बजे वापस उठकर आजादपुर मंडी जाने लगा |  अपने 25 साल के तजुर्बे का पूरा फायदा उठाया और कुछ ही  दिन में वह मदर डेयरी से सस्ते भाव में सब्जियां बेचने लगा | 

1 महीने की कमाई उसने वापस उसी दुकान में लगाई और नया इलेक्ट्रॉनिक कांटा खरीदा, एक मोबाइल खरीदा और पंपलेट भी छपवाए | 

फ्री होम डिलीवरी के साथ एक नई शुरुआत की और देखते ही देखते 1 दिन की बिक्री  7000 पर पहुंच गयी | लेकिन तभी मदर डेरी वाले एक नया दांव खेला और रेट बिल्कुल कम कर दिए | 
वह रेट तो कम कर सकता था लेकिन 25 साल का तजुर्बा कहां से लाता,  मदर डेरी वाला  बंसी सब्जी वाले  जैसी  क्वालिटी नहीं दे पाया  और धीरे-धीरे बंसी सब्जी वाले की दुकान ने रफ्तार पकड़ना शुरू किया और लोग लाइन में लगकर सब्जी खरीदने लगे सिर्फ 6 महीने की मेहनत में ही उस सब्जी वाले ने अपनी जंग जीत ली मदर डेयरी वाले ने अपनी दुकान वहां से ले जाकर दूसरी जगह लगा दी| 

हम अक्सर एक छोटी छोटी परेशानी से डर कर भाग जाते हैं और प्रयास करना ही छोड़ देते हैं बिना लड़े ही हार जाते हैं पर क्या बंसी बिना लड़े हार जाता तो अपनी दुकान को कभी चला पाता क्या ? उसके बेटे इंजीनियर बन पाते ?

यह कहानी विद्यार्थियों के लिए ऐसे कई सवाल छोड़ जाती है | 
क्या हम अपनी पूरी मेहनत कर रहे हैं ? क्या हम अपने लक्ष्य पाने की चेष्टा पूरी तरह से कर रहे हैं ?क्या हम कोई बहाना तो नहीं बना रहे ? क्या हम खुद को धोखा नहीं दे रहे?

इन सभी सवालों के जवाब यदि हम सच्चे मन से खुद को दें तो हमें सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है........
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कागजी टंकी

सरपंच साहब ! ओ..... सरपंच साहब! 
छगन सरपंच साहब के बड़े से मकान के बाहर खड़ा होकर आवाज लगा रहा था कई बार आवाज लगाने के बाद ऊपर बालकनी से एक जवाब मिला, 
"सरपंच साहब तो नहीं है, 2 दिन से कहीं गए हुए हैं,सोमवार को आएंगे तब आना|"
सोमवार को जब  छगन सरपंच के घर पहुचा तब सरपंच साहब बाहर चबूतरे पर बैठकर हुक्का पी रहे थे l

आओ भाई छगन, कैसे आना हुआ - सरपंच ने हुक्के का एक कश पीते हुए कहा |

सरपंच साहब मैं 3 दिन पहले भी आया था, तब सरपंचानी जी ने बोला कि आप कहीं गए हुए हैं|

अरे मैं अपनी बेटी के यहां गया था, समधी जी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी, कल शाम को ही आया हूं|

 यह सब छोड़ो...तुम बताओ, कैसे आना हुआ, सरपंच में हुक्का छगन के हाथ में पकड़ आते हुए कहा|

साहब मेरे घर के पास जो हैंडपंप है ना, उसका पानी ऐसे ही बहता रहता है और मेरे घर के सामने आकर भर जाता है, उसमें बहुत बदबू  आती है और खूब सारे मच्छर भी हो रखे हैं|

समस्या तो तुम्हारी जायज है,  बताओ मैं कैसे सहायता कर सकता हूं , तुम ही बताओ क्या करवाना है  मैं तो तुम्हारी सेवा के लिए ही हूं | जो बोलोगे, करवा दूंगा|

एक गड्ढा करवा दीजिए ,ढकवा दीजिए, पानी सारा उसी में चला जाएगा|

ठीक है छगन करवा देते हैं ,अपने यहां के वार्ड पंच से एक एप्लीकेशन लिखवा कर ले आओ|

अगले दिन सुबह उठते ही छगन वार्ड पंच के यहां पहुंच गया, 
वार्ड पंच ने मौके का मुआयना किया और एक एप्लीकेशन लिखा | उसने लिखा कि यहां पर एक पक्की टंकी की जरूरत है जो नीचे से खुली होगी  जिससे पानी रिस कर नीचे चला जाएगा |

छगन को बोला- छगन यहां पर पक्की टंकी बनाते हैं, कच्ची टंकी तो बहुत जल्दी टूट जाएगी|

पर देख सरकारी काम है थोड़ा टाइम लगेगा, पर हो जाएगा|
 यह एप्लीकेशन लेकर कल तू सचिव साहब के पास चले जाना वह इसका एक एस्टीमेट बना देंगे और सरपंच साहब के साइन से पैसा पास हो जाएगा|
छगन बहुत खुश हो गया और अपने वार्ड पंच को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया 
अगले दिन तड़के ही छगन सचिव साहब के घर चला गया |
सचिव साहब ने एप्लीकेशन देखते ही छगन को बोला -छगन भाई टंकी निर्माण का काम तो पूरे खत्म हो चुके है अब तो अगले साल में ही आपकी ये टंकी बन पाएगी|
छगन की आशा पूरी टूट गई,  दुखी  मन से- सचिव जी कुछ हो नहीं सकता टंकी तो अभी बनानी है|
देख भाई छगन काम हो तो सकता है  कुछ खर्चा करना पड़ेगा, ₹500 लगेंगे|
छगन ने सोचा कि बच्चे एक बार बीमार होते हैं तो हजार डेढ़ हजार ऐसे ही खर्च हो जाते हैं तो इनको ₹500 देने पर भी फायदा ही है और उसने हां कर दी|
सचिव ने ₹9000 का एक एस्टीमेट बनाकर छगन को थमा दिया और बोला कि सरपंच साहब के साइन करा कर इसको पंचायत समिति में दे देना|
अगले दिन छगन सरपंच  के पास पहुंचा, सरपंच साहब ने जाते ही उस एस्टीमेट पर साइन कर दिए और छगन ने सारे कागजात पंचायत समिति में जमा करा दिए|
करीब 1 महीने बाद एक बूढ़ा मजदुर अपने हाथ में एक कुदाली लेकर छगन को ढूंढता हुआ गांव में आया|
और छगन के बताए हुए जगह पर गड्ढा खोदने लगा,   3x3 का गड्ढा खोदने में पूरे 8 घंटे के लिए,  और शाम तक गड्ढा तैयार हो गया|
जाते हुए मजदूर बोला इसमें कनेक्शन तभी करना जब इसका का ढक्कन आ जाए|
10 दिन तक इंतजार करने के बाद भी जब कोई चुनाई करने वाला और ढक्कन लगाने वाला नहीं आया तो छगन फिर से सरपंच साहब के पास गया|
सरपंच साहब ने इस बार भी उसको सीधे सचिव के पास भेज दिया,  छगन अब परेशान हो चुका था उसने सचिव को बोला कि डेढ़ महीना हो गया, कोई भी निर्माण कार्य नहीं चल रहा हैl कब तक बनेगी टंकी? 
सचिव ने समझाते हुए,  टंकी तो बन गई बस अब उसमें ढक्कन लगाना बाकी है ,कल परसो तक लगवा देता हूं|
करीब 20 दिन बाद ट्रैक्टर ट्रॉली में बड़ा सा सीमेंट का ढक्कन लेकर कुछ मजदूर आए|
लेकिन उस ढक्कन को गड्ढे के ऊपर रखते ही गड्ढा एक तरफ से टूट गया और वह ढक्कन उस गड्ढे के अंदर ही गिर गया |
उसके बाद छगन ने बहुत दिन तक प्रयास किया बहुत बार सरपंच साहब से ,सचिव से और वार्ड पन्च से मिला लेकिन ढक्कन उस गड्ढे से बाहर नहीं निकला|
3 महीने तक भी कुछ काम नहीं होने से, छगन अपनी फरियाद लेकर पंचायत समिति पंहुचा, वहां के बड़े बाबू ने  ₹9000 की एक रसीद  और  छोटे बाबू ने पूरी बनी टंकी की एक तश्वीर दिखाई और बोला ये देखो टंकी तो बन गयी | तश्वीर में छगन का घर साफ़  रहा  था और टंकी भी पूरी बनी हुई थी |  उसके बाद वह पंचायत समिति के सभी  अफसरों  से मिला और बोला टंकी अभी भी नहीं बनी  है चाहो तो जाकर देख ले | लेकिन तश्वीर को कोई कैसे झुटला सकता है | सुबह से शाम हो गयी और उसकी बात मानने को कोई तैयार नहीं था | 
छगन इस सरकारी तंत्र से तो हार मान गया, पर टंकी तो उसको बनानी थी |  घर जाकर 2 घंटे में 2X2 का एक नया गड्डा  बना लिया और गॉव से कुछ जवान लड़को को बुला कर उसी  ढक्क्न को नए गड्डे पर रखवा लिया | 
दोस्तो आजादी के 70 साल बाद , आज भी बहुत सारी टंकियां भी सिर्फ कागजों में बनती है , ऐसे ही बहुत से छगन परेशान होते है| चंद लोगो की इस तरह की बेईमानी से मेहनतकस सरकारी कर्मचारी भी बदनाम होते  है
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सुख या दुख

दो बेटों की अम्मा सुखी थी या दुखी, उसको खुद भी समझ नहीं आ रहा था I बड़ा बेटा  सुरेश जो अपने घर बिजवासन हरियाणा से बहुत दूर हैदराबाद में जाकर अपना बिजनेस जमाया था I साल में एक बार ही  घर आ रहा था उसके बच्चे बड़े तो हो रहे थे लेकिन इस दादी को कभी दुलार का मौका भी नहीं मिला था I
छोटा बेटा रमेश जो कि घर से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर एक कंपनी में मैनेजर थाI
 एक बेटा लाखों मैं अपने बिजनेस में कमा रहा था तो दूसरा बेटा अच्छी तनख्वाह पा रहा था I
मां इस बात से खुश थी एक बेटा तो पास ही रहता है लेकिन तभी उस बेटे का भी प्रमोशन के साथ तबादला हो गया, उसके तबादले की खबर सबको थी लेकिन उसने अपनी मां को नहीं बताया I 
सोचा घर जाकर पहले कुछ समझा लूंगा फिर खुद ही बताऊंगा I
 लेकिन समझाने को भी तो कुछ नहीं था वह कुछ भी कहे पर वह दूर तो जा रहा था और अपनी मां को कैसे झुठला सकता था I 
छुट्टी लेकर वह पहुंच गया अपनी मां के पास और मां को बोला- मां तू मेरे साथ चल I 
मां बोली- तू 50 किलोमीटर तो दूर रहता है हर हफ्ते घर आ जाता है मैं तेरे साथ चल कर क्या करूंगी I
लेकिन फिर रमेश बोला - नहीं मां, तू चल मेरे साथ I
मां बोली- बेटा, क्या हो गया तुझे , क्यों बहकी बहकी बात कर रहा हैI
 इतनी सी दूर के लिए क्यों मैं अपना घर छोड़ दूं I मुझे अपने इस घर से बहुत प्यार है, इसमें मेरे दो बेटों ने जन्म लिया है उनकी किलकारियां अभी भी इस घर में  सुनाई देती है, मैं  इस घर को को छोड़ नहीं सकती हूं I
यह सब बात सुनकर रमेश की आंखों से अश्रु धारा बहने लगी और मां को बोला,  मां मेरा तबादला चित्तौड़गढ़ राजस्थान में हो गया है I
मां - अब तो कितने दिन में आएगा I
रमेश - 500 किलोमीटर है , लेकिन 15 20 दिन में एक बार तो आ ही जाऊंगा I
इतने में सुरेश का फोन आ गया और बोला, मां मैं बस स्टैंड पर आ गया हूं I रमेश को लेने भेज दो
मेरे तबादले का दुख कुछ देर के लिए टल गया और मैं भैया को लेने चला गया  I
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Thought Writing

कठिन परिश्रम या प्रतिभा

सफलता के लिए प्रतिभा का होना आवश्यक है या इंसान कठिन परिश्रम करके सफल हो सकता है? यह प्रश्न मेरे दिमाग में अक्सर घूमता रहता है, और इसका जवाब  मिल नहीं पाता।मनोविज्ञान प्रतिभा पर अधिक जोर देता है लेकिन परिश्रम ने अपनी महत्ता खुद साबित की है। 
कुल्हाड़ी लकड़ी को काटती है यह उसकी प्रतिभा है या परिश्रम,  रस्सी  पत्थर को काट देती है यह उसकी प्रतिभा है या परिश्रम। क्या प्रतिभा ही सफलता  की एक मात्र कुंजी है,  या असफलता का एक  मात्र बहाना  है।  कई बार अखबारों में यह पढा है कि एक बच्चा जो सातवीं क्लास में फेल हो गया था वह बड़ा होकर एक आईएएस अधिकारी बन गया तो क्या उस बच्चे में प्रतिभा की कमी थी? इसलिए वह सातवीं क्लास में फेल हुआ था या  उस बच्चे ने परिश्रम बहुत किया है इसलिए वह आईएएस अधिकारी बन गया। , या यूँ कहे  बच्चे की मेहनत मे कमी थी इसलिए वह सातवीं क्लास में फेल हुआ या वह बच्चा बहुत प्रतिभावान था इसलिए वह आईएएस अधिकारी बन गया।  यह एक अनोखा खेल है जिसमें जो सफल होता है वह प्रतिभावान कहलाता है और जो असफल होता है वह ना लायक, असमर्थ और काबिलियत रहित कहलाता है। लेकिन यह सत्य है कि सफल होने के लिए परिश्रम करना उतना ही आवश्यक है जितना कि प्रतिभा का होना। 
दुनिया को देखने से यह महसूस होता है कि प्रतिभा केवल अपवाद के रूप में ही मिलती है जो कि कम परिश्रम करने पर भी आपको सफलता दिलवा दे।  पर ज्यादातर लोगों मैं उतनी अधिक प्रतिभा  होने पर भी  मेहनत से सफलता अवश्य मिल जाती है।  लेकिन ऐसा नहीं हो सकता की लगातार  मेहनत करने पर भी आपको सफलता नहीं मिले।  प्रतिभा का बहाना छोड़कर आज से ही कठिन मेहनत करना शुरू कर दीजिए आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
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