तु ढूंढती मुझको, मैं ढूंढती तुझको हम दोनों मिलकर खोज लाते हैं चल आज उसको, तु समाई मुझमें, मैं समाई उस में राब्ता है हमारा जिससे ,वह ठौर खोजता हैं आज किसको, रोज देखती तु मुझको, रोज देखती मैं उसको सकूँ दोनों का है ,जहाँ वो देखता किसको, चैन तुझे भी नहीं, सकूँ मुझे भी नहीं, गुफ्तगू कर हम बजम में पूछते हैं चल आज उसको तु सोहबत है उसकी मैं मोहब्बत हू उसकी तु समझती हयात अपनी, मैं मानती रूहानियत उसको बता तेरी रजा उसको, क्या सजा देगा वह मुझको शिद्दत से पाने की तलब हमारी चुरा ना ले रब.... कहीं उसको "रूह और मेरी परछाई"
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