Laxmi-Levin

A passionate teacher and writter




Poetry

शून्य सी प्रीत

प्रेम की एक खूबसूरती ये देखी कि वो 
कभी कम नहीं होता
 हर दिन बढ़ता ही जाता है
चारो तरफ प्रेमत्व की खुशबू से
 प्रेम जीव को सराबोर करता रहता है
अनंत शून्य में जैसे कोई ब्लैक होल हो
वैसे ही इस अनंत ब्रह्माण्ड में 
प्रेम भी उसी भांति क्रियाशील रहता है 
जिसका कही कोई अंत नहीं,कहीं कोई छोर नहीं, 
और इसके सिवा कहीं कुछ और है भी नहीं, 
संपूर्ण सृष्टि में प्रेम और केवल प्रेम ही सर्वोपरि है!! ?!!
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प्रेमत्व

हां, 
मैंने प्रेम करना
अपने प्रियतम से सीखा है।। 

कर्तव्यों के पथ पर
चलते हुए भी
प्रेम किया जा सकता है....

जिम्मेदारियों को निर्वहन
करते हुए भी
प्रेम किया जा सकता है...

बिना जताए और
बिना बताए भी
प्रेम किया जा सकता है....

आंखों से बोलकर और
 होठों को सिलकर
दिल से भी प्रेम किया जा सकता है... 

दुनिया से ओझल
इक दुजे से दूर, ख्यालों में
हर क्षण अपने प्रिय तम में खोकर 
बहुत  प्रेम किया जा सकता है.... 

हां 
प्रेम करना मैंने सीखा है
अपने प्रियतम से
और ये सीख दुनिया की
सबसे अमूल्य सीखों में एक है!
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मत उलझ

गर बचानी हैं बेटी तुझे अपनी 
तो ना बीजेपी और ना कांग्रेस मे उलझ

हिन्द देश का वासी है तु
 ना हिन्दू और ना मुस्लमान में उलझ

भाईचारा हैं तेरा मूल सदा 
ना तु  यहां किसी जातिवाद में उलझ

गर बचानी हैं लाज तुझे अपनी
तो ना तु इन हुक्मरानों की हुकूमत में उलझ

हैं  ये सब तेरी आढ में आगे जाने वाले 
तो ना तु इनकी जादू सी बातों में उलझ

रहना है तुझे यही कही जमीन पर 
तो ना तु किसी क्षेत्रक वाद में उलझ

सीखा खुद अपनी लाडली को हर दांव-पेंच 
ताकि ना वो किसी की बाट देखे बचाने को

कर उस पर इक अहसान ऐसा
जिसे सीख वो महफूज़ करे इस धरा को

गर बचानी हैं बेटी तुझे अपनी 
तो खुद खडा हो नारी जात की रक्षा को।।
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मैं हिंदी हूँ

कहने को तो मैं हिंदी हूँ 
देखो मुझे मैं कैसे जिन्दी हूँ। 

कहते हैं हिन्द देश के वासी
हम हैं हिन्दी भाषा के भाषी। 

कुछ सनातनी करते हैं संवाद यहां 
रक्षक हैं वो मुझ भाषा के भाषी। 

कहने को तो आज 
हर जुबां पे होगा मेरा नाम 

पर बहुभाषी खा गए देखो 
कैसे मेरा हर इक काम। 

लाचार सी हो गयी हू मैं 
गंवार हो गया आज मेरा भाषी 

अंग्रेजी बोलने वाला हो गया 
आज यहां  कैसे मधुर भाषी। 

कहने को तो मैं राष्ट्र भाषा हिंदी हूँ 
कैसे बताऊँ आपको 
कैसे अब मैं जिन्दी हूँ ।

सटीक सुलभ सौम्यता हैं मुझमें 
भावों की अभिव्यक्ति की 
अनोखी विधा हैं  देखो मुझमें। 

कुछ उलझी कुछ सुलझी सी अनजान सी हूँ मैं 
तुझ इन्डियन की दुनिया में पहचान सी हूँ मैं। 

जान के मुझको इतना 
अब तुम्हीं बताओ कैसे मै जिन्दी रहू?? 
तुम प्यारों की भाषा कैसे मै हिन्दी रहू??
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