Poems



 नेचर ये तेरा कैसा नेचर 

  RLaxmiLevin       2020-06-06 08:02:53

रूप रंग कैसा है तेरा 
समझ ना पाया इसको कोई। 
नेचर ये तेरा कैसा नेचर
माया इसकी जान न पाया कोई।। 

बन पेड़ यहां शीतल सी छांव
नीचे तु बिठलाता। 
ना बदले मे कुछ कभी औरो से मांग करवाता। 
सेवा सा भाव देकर ना  खुद पे तु इठलाता। 
अपना पराया ना भेद कर प्रीत जगत को तु सिखलाता।। 

कभी तू बन जानवर शिकार खुब कराता। 
दर्द पीर खुद को देकर गैरों का न दिल दुखाता। 
जंगल भी तुझसे मंगलभी तुझसे
इस जीव जगत को प्रेम की राह दिखाता।। 

फिर तू बनता एक बुद्धिमान प्राणी
अकड़ बहुत अपनी  तु यहां दिखलाता।। 
इंसानियत के नाम पे कैसी 
हैवानियत तु यहां दर्शाता।। 

नेचर भी अफसोस है करता होगा
अपनी ही कृति प़ें शर्माता होगा
रो रो कर अपने अश्रु किसको दिखाता होगा।। 
लेकिन
कोरोना के रूप में फिर तुने सबक दिया
भरी हुई महफ़िल को 
किस तरह वीरान किया। 
समझा मानव को तूने सब आज यहां
चिरकाली  

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