Poems



 मेरी माँ  

  Raj Kumar       2020-08-10 06:42:13

माँ तुमने अपने रक्त से नौ  महीने गर्भ मे सींचा l
तप जैसा रहा ये दिन तेरा,  फिर लौकिक संसार मे मुझे खींचा l

किये भरण -पोषण  तूने बहुत जतन से मेरा l
मैं, मैं ना रहा बस बनता गया छाया तेरे ll

कितनी श्रम करके पहले उंगलियों को पकड़कर चलना सिखाया l
लोचन मे लगे कीचड़ को अपने साड़ी के फॉल से साफ जो कराया ll

तेरे  हमेशा साथ रहने की इच्छा  मे, पीठ पर बिठाकर सिलवट पे मसाला भी पिसा l
फिर भी ऐसी कोई जिद नहीं जो तूने भी उसे भरपूर ना जिया ll


कभी अपने हिस्से का मीठा तो कभी आम देकर, मुछे अपना जीभ -रस भी दिया l
कभी हंसा तो पुलकित हो गयी, ज़ब रोया तो दिलासा भी दिया ll


मेले मे जाने के लिये तूने अपने हाथों से मुझे खुद ही सजाया - सवारा l
मेरा लाडला देखो हैं कितना हर्षक, ये पूरे मोहल्ले को पुकारा ll

तेरे हाथों को तवे पे जलते देखा हैंl
 फिर सरसों के तेल के साथ उन्ही को मलते देखा हैं  ll

माँ तूने बहुत ही दुःख झेले है l
पर कभी भी एक आह तेरे नहीं किसने देंगे है ll

माँ तेरी गोद तो सुनहला बिछौना हैं l
दुःख को हरने वाला और शांति देने वाला प्यारा खिलौना हैं ll


माँ तेरे बिना तो मेरा क्या,  सबका अस्तित्व ही सुना l
मैं तुझे हमेशा पुजू श्रदा से,  हैं मेरी यही  कामना ll 

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