Raj Kumar



Raj Kumar

Civil Engineer




Poetry

फिर ना उदास होना

रात के बाद दिन का ही, हैं होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

ये मुश्किल दौर का भी,हैं खत्म होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना 

काली घटा के बाद ही हैं, नीले आकाश का होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

दुःख के बाद ही हैं, निश्चित सुख का होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

पतझड़ के बाद ही हैं, हरितमय का होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास  होना ll

तपती धरती के बाद ही हैं, इसको गिला होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

पसीने के बाद ही हैं, शरीर का ठंडा होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

आंधी के बाद ही हैं, निरव बयार का होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना l

अभी समय हैं कठिन,पर इसको  हैं फिर से सुन्दर होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

जी जीवन को ऐसे, जैसे कल ये हो ना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

काम कर जा ऎसा,  पृथ्वी महके कोना कोना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना ll

ना गुमान कर देह पे, इसको हैं मिट्टी होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास  होना ll

हैं यही सत्य, किसी को नहीं हैं अमर होना l
ऐ उदास मन, फिर ना उदास  होना l

ऐ उदास मन, फिर ना उदास होना.......

"स्नेहिल राज "
02.05.2021
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आगे बढ़ते रहो

लड़ते रहो, गिरते रहो पर, आगे बढ़ते रहो l
टूटते रहो, जुटते रहो, पर आगे बढ़ते रहो ll

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सोने की तरह आग मे गलो , पर आगे बढ़ते रहो l
कठिन दुश्वारियों को गले लगाओ, पर आगे बढ़ते रहो ll

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किसी को गिरा के नहीं, पर पछाड़ के आगे बढ़ते रहे l
किसी से अलगाव करके नहीं, पर मिलाके आगे बढ़ते रहो ll

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किसी को रुला के नहीं, पर हंसा के आगे बढ़ते रहो l
किसी को फसा के नहीं, पर सुलझा के आगे बढ़ते रहो ll

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किसी को मिटा के नहीं, पर बना के आगे बढ़ते रहो l
किसी को तिरस्कृत करके नहीं, पर प्यार दे के आगे बढ़ते रहो ll

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किसी को दिखाने के लिए नहीं, पर अलख जगाने के लिए आगे बढ़ते रहो l
खुद के लिए नहीं, देश को बढ़ाने के लिए आगे बढ़ते रहो, देश को आगे बढ़ाने के लिए आगे बढ़ते रहो ll

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"स्नेहिल राज "
काँटी, मुजफ्फरपुर 
बिहार 
15.12.2020
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शुभ दीपावली !!! 2020

आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
और अपने अहंकार को मूल से मिटाये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
एक अवगुण को तो  दीप मे जलाकर नष्ट कराये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
अपने तन, मन और धन से किसी निर्धन परिवार को पुलकित कराये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
बच्चों का बचपन उनको ख़ुशी ख़ुशी लौटाये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
स्नेह  से सबको अंगीकार करने का गुण अपनाये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
आत्मबल रूपी तेल से अपने को जलाये ll

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आओ हम सब मिलकर दीपवाली मनाये l
सर्वजन सुखाय की अनोखी रीति की अलख जगाये ll
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आज और कल

जो हैं वो आज मे ही  हैं, कल तो केवल एक एहसास हैं l
ख़ुशी भी आज ही हैं, बनाना भी  आज ही सुन्दर मिजाज हैं ll

मन को ना उलझाओ कल मे l
सब समेटो आज की ही हलचलll

जिओ आज का हरेक पल l
क्योंकि हो ना हो कल ll

खेलो, कूदो खुशियाँ मनाओ आज l
सब कर दो नयोझवार मनराज ll


दाता का दिया आज, भर दो साहस से l
मुरीदे भी पूरी कर लो आज सब अपने तन मन से ll
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दोस्त

ज़िन्दगी में तो बहुत उतार चढाव हैं l
इसके कभी सहज़ -सरल तो कभी कठिन स्वभाव हैं ll

दोस्तों का साथ होना, सुन्दर सा एहसास होता हैं l
उनसे सुख -दुःख बाटने का काम आसान होता हैं ll

ज़ब हमसफर हो सहयोगी और समझदार l
तब हर सफर भी लगता है सदाबहार ll

बचपन की यादो से तो अब अभिमान होता हैं l
थी थोड़ी सी जरूरते पर ख़ुशी का बहुत पान होता था ll


जीवन को तो अपने ही सुनहले रंगों से सजाना हैं l
दूसरों की सुनके इसको नहीं बदरंग बनाना हैं l


सोचो और करो आत्मा परिछन और ढूंढो जिंदगी का लक्ष्य l
पाओगे एक चीज की करो सबके लिए कुछ कर्म ll
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हिंदी दिवस

हिंदी दिवस की शुभकामनायें 

आओ हम सब मिलकर हिंदी भाषा को भावनाओं  मे समाये l
मिलजुल कर इसको सर्वोच्च शिखर पर पहुचाये ll

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यह  एक भाषा ही नहीं पूर्वजो की  पहचान है l
यह सहज़, सरल, मीठी और बहुत आसान है ll

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केवल भारत मे ही नहीं यह सब देशो मे भी  अंगीकार हैं l
बच्चे, बूढ़े, युवा सभी के लिए यह  स्वीकार हैं ll

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लिखने, सुनने, पढ़ने और बोलने मे भी  ये मजेदार हैं  l
लगा तो अपनी कौशलता तो लगती  ये लच्छेदार हैं  ll

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अग्रेंजी ने इसके ऊपर थोड़ी से धूल की परत चढ़ाई है l
फिर भी हिंदी भाषा ने बहुत इज्जत कमाई है ll

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हम तो हिंदी भाषा के बड़े दीवाने हैं l
यह मेरे रूह मे बसती है ना ही यह मेरे लिए अनजाने हैं ll

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बच्चन, अटल बिहारी बाजपेयी, दिनकर ने इसके अलख को जगाया है l
गांव, कस्बो, शहरों ही नहीं इसे महानगरों तक पहुंचाया है ll

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आओ हम सब मिलकर यह बात जान ले l
हिंदी से ही होगा समुचित विकास यह मान ले ll
आओ हम सब मिलकर यह बात जान ले l
हिंदी से ही होगा समुचित विकास यह मान ले ll

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राज कुमार 
काँटी, मुसफ्फरपुर 
बिहार 
14.09.2020
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औरत

मैं हू अमृत रूपी जीवनदायिनी औरत l
मैं हू सब जिम्मेदारियों को निर्वहन करने वाली औरत

मैं हू निडर, निश्छल और साहसी औरत l
मैं हू सब पर भारी पड़ने वाली औरत ll

मैं हू जज्बातों से परिपूर्ण औरत l
मैं हू मुश्किलों से निजात देने वाली 

मैं हू पूरे परिवार का पोषण करने वाली औरत l
मैं हू जिंदगी को जिंदादिल जीने वाली औरत ll

मैं हू कठिनाइयों  से लड़ने वाली औरत l
मैं हू दुश्मनो के दाँत खट्टे करने वाली औरत ll


मैं हू समाज को प्रेरणा देने वाली औरत l
मैं हू खालीपन दिलो को भरने वाली औरत ll
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संगिनी

तेरे बिना ज़िन्दगी से नहीं कोई आस l
ये जिद है मेरी की तू रहे हमेशा मेरे पास ll


तुम मेरी आवाज़ की बन जाओ गीत l
मैं बना रहा हू तुम्हारा सच्चा मनमीत ll


तुम बन जाओ विशाल धरती तो मैं बन जाऊ खुला  आसमान l
इस दुनिया मे ना हो कोई जोड़ी अपने समान ll


मैं सागर तो तुम उसकी अस्तित्व की जल कण l
बहती तुम मेरे  साथ हर छन -हर पल ll


हम दोनों उपवन के दो मनोरम सुगन्धित फूल l
खुद भी खिले, सबको खिलाये और रहे सदा कूल ll


मैं तुम्हारा हंस तो तुम मेरी मोहक हंसिनी l
मैं तुम्हारा सखा तो तुम मेरी संगिनी ll

तुम मेरी शमा तो मैं तेरा परवाना l
इस जहा मे मेरे जैसा कोई नहीं तेरा दीवाना 

हम हमेशा एक दूसरी की बनते है आवाज़ l
यही है हमारा जिंदगी की खुशहाली का राज ll
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किसान

माथे पे पगड़ी, गले मे गमझा और धोती पहनावा हो , जिसकी पहचान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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पौ फटते ही कंधो पे हल और साथ में हो बैल, जिसकी हो पहचान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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हाथों में हँसिया और ज्येष्ठ में गेहूं की बाली कटती, जिसकी हो  पहचान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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काम करते जिसके स्वर्ण रूपी पसीने से भीगे हो  परिधान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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गमझे में लपेटी रोटी, गुण और मट्ठा से खेतो में जो करता हो  जलपान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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आधे पाँव पानी में, भीगी हो धोती और जो रोप रहा हो धान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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जिसके हाथ सने हो भूसे,  खुदी,  पानी से नाद में और परोसे मवेशियों को खान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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जो पूरी भारत की अर्थव्यवस्था की हो जबरदस्त शान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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जो सुबह और सायं होते ही गाय -भैसों से दूध निकाले इंसान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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जो तन, मन और अन्न से सबको पोषित करता रहता हो और जिसके लिये सरकारे बनी रहे अनजान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll

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भले ही वंचित  धन से पर जो भरा हो जीवन ऊर्जा से और हो निष्ठवान l
वो कोई और नहीं, बल्कि हैं अपना पूजनीय किसान ll
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Thought Writing

आत्मबल

जो चीज ऊर्जा लाती हैं कहे तो पॉजिटिव ऊर्जा वही चीज ज़ब निगेटिव ऊर्जा लाती हैं तो प्रलय जैसा मंजर बन जाता हैं. पहाड़ / जंगल जो हमें बारहमास  सब कुछ देते हैं जैसे जीवनदायिनी ऑक्सीजन, अनमोल जड़ी बूटी, बहुमूल्य लकड़ी, पशुओ के लिये चारा, अवसादग्रस्त लोगो के लिये हरितमय वातावरण, निर्मल पीने का पानी इत्यादि. लेकिन ज़ब यही पहाड़ / जंगल मानसून  मे पानी से भर जाते हैं तो भयावह भूस्खलन, बाढ़, बादल फटना आदि जैसे नाशक कार्य विधियां लाते हैं. मतलब समय के साथ मानव / संसाधन /ऋतू  आदि के क्रियाक्लाप परिवर्तित होते हैं जिसके परिणति मे सब कुछ बदल सा जाता है. तभी तो समय को बलवान बोला गया है. 
क्योकि सबकुछ परिवर्तनशील हैं ये देह, दिमाग़, देशज, हवा,  पानी.... कोई स्थिर नहीं हैं.... नाही होना भी चाहिए.. सिर्फ आत्मा या मन को छोड़कर..... 
अभी भुवन के सभी देश बाढ़ से ग्रस्त हैं चाहे वो अपना देश हो या परदेश हो... स्थिति कठिन... कितने गांव के गांव उजड़ गए... आसाम हो या बिहार, गुजरात हो या उत्तराखंड.... नेपाल हो या इटली,, चीन हो या अमेरिका.. सब जलमग्न... कितने लोग तो इसमें बह गए... कितने ढाँचा टूट गए.... केवल हानि ही हानि.... 

बहुतायत इंसान तो अब चींटी की तरह जिंदगी जी रहा हैं... पता नहीं कौन सी चीज उसको कब मसल जाये..... 

इसमें एक ही चीज इंसान को खुद को मजबूत करती हैं जो हैं उसका आत्मबल.... कुछ भी हो जाये, अंतिम श्वास तक आशा और निरंतर कुछ अच्छा करने की इच्छा को नहीं त्यांगेगे.
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