Poems



 वो गांव और वो गलियां  

  Raj Kumar       2020-08-10 06:27:20

वो गलियां जिसमे बचपन बीता l
वो गलियां जिसमे दोस्तों से जीना सीखा ll

वो गलियां जिसमे खपरैल के  घरों से गिरते बारिश के पानी से नहाया l
मौजों की टोली के साथ  उस दिन को यादो की बारात से सजाया ll

गांव की पगडंडिया थी और पुराने साईकिल की सवारी l
पीछे पीछे बच्चों की उन्मुक्त टोली और हमारी होशियारी ll

बुजुर्गो के स्थायी भाव और गोल घेरे मे हुक्का था l
 ये सब देख हम सारे बच्चों का दिल हक्का -बक्का था ll

चाची और बहनो का गोबर से सना हाथ था l
जगह -जगह गलियों की दीवारों पर उपलों का ठाठ था ll

जाड़े के दिनों मे गोल आग के घेरे मे छोटे से बड़ो का जमावड़ा था l
कभी किसी का हाथ सिक रहा था तो कभी पिछवाड़ा था ll

कभी किसी की बारात आयी तो सब बैठे गए पत्तल पे खाने l
कोई कहे पूड़ी और दही से तुझे अभी और हैं खाली पेट को आजमाने ll

गाँव और उसकी गलियां ही तो हमारी पहचान हैं l
हम भले कही बस जाये पर मूल मे तो यही हमारी  शान हैं ll
 

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