Poems



 औसत इंसान  

  Raj Kumar       2020-08-04 07:32:43

मत बन "औसत " इंसान अपने कर्मभूमि से l
नित लड़ अपने आप से, तू छोड़ आरामदेह दायरा अपने आसन्न से ll

***** ***** *****
मत बन "औसत "इंसान अपने जन्मभूमि से l
फहरा पताका सफलता का गगन के आलोक से ll

***** ***** *****

मत बन "औसत "इंसान अपने रंगभूमि से l
खिल उठ उत्तम कलाकार रूप मे और कर मंचन हर खुश दिल से ll

***** ***** ***** 

मत बन "औसत " शिष्य  अपने पुरुषार्थ से l
रेंग चींटी तरह पर सिद्ध कर अर्जुन के गांडीव की तरह से ll

***** ****** ******

मत बन "औसत "नियंता अपने हाव -भाव सेl 
कर सबको हत प्रभ अपने सहज़ बुद्धि के चाव से ll 

मत बन "औसत " माता -पिता अपने स्वाभाव से l
कर उत्कृष्ट  लालन -पालन अपने ही चातुर्य से ll

***** ***** *****

मत बन "औसत " सुत अपने ही कार्य से l
साबित हो श्रवण जैसा अपने ही पुण्डाय से ll

***** ***** ***** 

-*-*-*-*-