Poems



 जीवन कर्म युद्ध  

  Raj Kumar       2020-07-31 15:51:57

रोज उठते हैं और निकल जाते अपने कर्मयुद्ध में l
चेतन और अवचेतन मन से लग जाते अपने हस्त सिद्ध में ll

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नहीं लगाने देते आलस को  सेंध अपने तन मन में l
झोक देते है अपने को पूरे मनोयोग से समयचक्र में ll

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मन में रहता हैं कुछ ऎसा सुन्दर, साहसी, दयालु खयाल l
एक से एक ग्यारह होते हैं और देश का मान बढ़ाते  हैं प्रतिपाल ll

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करते समाज के विकास में सहभागिता लेकर सबको साथ l
चलते हैं अकेले पर मिलता जाता है सबका हाथों में हाथ ll

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सभी को देना चाहिए अपने स्तर और सामर्थय से देश हित में योगदान l
तभी तो अपना देश बनेगा एक आदर्श देश और महान ll

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फिर एक बार कहलायेगा हिन्द, सोने की चिड़िया l
और हरेक हिन्द जन के चेहरे पे होगी प्रशांत ख़ुशी की दुनिया ll

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लोग करेंगे पडोसी और सगे सम्बन्धी की भी चिंता l
जो बन पड़ेगा वो करेंगे और ना करेंगे कभी निंदा ll
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"स्नेहिल राज "
काँटी, मुजफ्फरपुर 

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