ना सोच की क्या हो रहा, रह हमेशा तू जोश मे l कर सबके हौसले बुलंद, और रह हमेशा होश मे ll कर सुकर्म निरंतर, पूरे मनोयोग से l जिससे सिद्ध हो जन्म सार्थक, इस लोक मे ll आना जाना तो एक चक्र हैं l पर सार्थक सिद्ध होना सबके लिये, एक फक्र हैं ll सूरज नहीं बन पाए तो कोई बात नहीं l दीपक बने जरूर, इसका रहे ध्यान हमें ll जीते खुद और जिताये भीl जिए खुद और जिलाये भी ll मंजर बनाये अलौकिक सा l जिसमे सब आनंदित हो सम्पूर्ण सा ll दुखो के लिये सोख्ता बन जाये l ख़ुशी के लिये बहार लाये ll हर एक को करें अंगीकार l विधाता ने भी कहा हैं, सबको करो स्वीकार ll विधाता ने भी बोला हैं सबको करो स्वीकार ll
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