मां नहीं थी मेरे, दादी ने पाला मुझको लिख रही हूं दादी मां देके आज हवाला तुझको, बेटी थी मैं, बेटा सा मान, संभाला तुने बंधन तोड़ समाज के आगे बढ़ाया तुने, बचपन में तेरी वो डॉट आज बहुत याद आती है रुलाकर हंसाने की तेरी कला आज बहुत रुला जाती है, निकल जाती थी जब मैं खेलने सतोलिए लड़कों के संग, कहती थी तु अच्छे नहीं है लड़कियों के लिए यह ढंग कर जाती है आज तेरी वही बातें मुझे फिर से तंग याद बहुत आती है तेरी मैया देख जमाने के ये रंग तब ना मानती थी मैं तेरी ये सीख भरी बातें मुस्कुरा कर फिर तू टाल देती थी मेरी वो लड़कपन की शरारतें, अपनों से लड़ लड़ के तुने खूब पढ़ाया मुझको अच्छी से अच्छी शिक्षा दिला जीने के काबिल बनाया मुझको, तु तो थी अनपढ़, संस्कार दे गई नायाब मुझको पढ़ी-लिखी आज की "माताएँ "कैसे हिसाब देंगी आज तुझको।
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