ए पथिक ना फेंक पत्थर मेरे दिल के समंदर में क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं दर्द इतने छुपाए सीने में कि मेरी मुस्कुराहट भी एक दर्द नज़र आएगी अंधेरे मे खड़ा हूँ इस कदर कि मेरी परछाई भी मेरे साथ ना चल पाएगी दूसरों के ज़ख़्म मिटाने के लिए ज़ख़्मी हुए क्या ये बहती हवा मेरे ज़ख़्म सहलाएगी ज़िंदगी से हुए खफा क्यों इशारा मौत का मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं प्यार की धुंधली रातों में कुछ इस तरह हम खो गये किन हाथों से हम धुन्ध हटाएँ जब खुद ही धुन्ध हम हो गये हवा बन साथ मेरे कुछ इस तरह वो रहती है बाहों मे ना भर सकूँ पर सांसो मे वो रहती है पर इस अधूरे अहसास से दिल को सुकून मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं आँख छलकती गागर हुई दिल समंदर हो गया एक क्षितिज सा ख्वाब देखा जो अधूरा रह गया दिल के आलम दर्द बन कब आँख तक भी आ गये जो ना शब्द मेरे कह सके वो मेरे आँसू कह गये पर हर टपकती बूँद को सहारा सीप का मिलता नहीं क्योंकि हर उठती लहर को किनारा मिलता नहीं हर अंधेरे चाँद को सितारा मिलता नहीं
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