एक वक्त था जो बीत गया वक्त के साथ भाग्य फिसलता गया वक्त की अनदेखी की थी हमने शायद वक्त ने हमारा वक्त ही बदल दिया मैंने घड़ी को कई मर्तबा देखा होगा मगर उस समय चक्र को समझ नहीं पाया इस अनदेखी से काल के उस चक्र को अभिमन्यु सा में ना तोड़ पाया मैं चला था अपना वस्तुनिष्ठ भाग्य लेकर अनदेखी ने मुझको उलझनों का मंदिर बना दिया इस वक्त की मार ने मुझको उलझनो के समाधान का मुसाफिर बना दिया आगे बढूं तो फिसलू मैं पर वक्त ने ही मुझको संभलना सिखा दिया अब खुद में हिम्मत जोश फूंक कर अभिमन्यु सा मै कालचक्र से आजमाइश करना चला गया अब मैंने सीख लिया है वक्त से वक्त के साथ फतेह तक चलने का सलीखा फिर से चल पड़ा हूं अपना वस्तुनिष्ठ भाग्य लेकर उम्मीद यही की अनदेखी न कर अपना भाग्य फिर से सवार सकूं
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