Poems



 आजकल रिश्तो में वो बात नहीं होती 

  Ashok Yogi "Shastri"       2020-12-04 01:55:54

आजकल     रिश्तों   में    वो    बात  नहीं  होती,
जिस्मानी मुहब्बत में रूह से मुलाकात नहीं होती !

बांट   दिया  फिरका  -परस्तो ने  मजहब  को यहां,
वरना आदमियत की कोई नस्ल और जात नहीं होती !

महफ़िले  सजती  हैं तंग  गली  के  दावत खानों में 
हाथी, घोड़े  पालकी  वाली  अब बारात  नहीं होती !

सिसक  रहा  है  बचपन  मैकाले  के  लादे   बस्तों में
पांच  सितारा  स्कूलों में  संस्कारों की बात नहीं होती !

जवानी छीन ली इडली,डोसा बर्गर जैसे पकवानों ने
खाने  में  अब   सीरा,  लापसी  और पात  नहीं होती !

फिजाओं में भर दिया ज़हर शजर पर खंजर चलाकर,
सावन में  अब  रिमझिम रिमझिम  बरसात नहीं होती !

दफ़न   है  सफ़र- ए-  जिन्दगी   इस्पाती   इमारतों  में ,
छतों पर  ताकती  सितारों  वाली  अब  रात नहीं होती !

यूं  तो  तरक्की बहुत की है "योगी " ने शहर के सफ़र में,
मगर   शहर  में अब  भगिनी और मां साथ  नहीं   रहती ! 

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