आजकल रिश्तों में वो बात नहीं होती, जिस्मानी मुहब्बत में रूह से मुलाकात नहीं होती ! बांट दिया फिरका -परस्तो ने मजहब को यहां, वरना आदमियत की कोई नस्ल और जात नहीं होती ! महफ़िले सजती हैं तंग गली के दावत खानों में हाथी, घोड़े पालकी वाली अब बारात नहीं होती ! सिसक रहा है बचपन मैकाले के लादे बस्तों में पांच सितारा स्कूलों में संस्कारों की बात नहीं होती ! जवानी छीन ली इडली,डोसा बर्गर जैसे पकवानों ने खाने में अब सीरा, लापसी और पात नहीं होती ! फिजाओं में भर दिया ज़हर शजर पर खंजर चलाकर, सावन में अब रिमझिम रिमझिम बरसात नहीं होती ! दफ़न है सफ़र- ए- जिन्दगी इस्पाती इमारतों में , छतों पर ताकती सितारों वाली अब रात नहीं होती ! यूं तो तरक्की बहुत की है "योगी " ने शहर के सफ़र में, मगर शहर में अब भगिनी और मां साथ नहीं रहती !
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