आओ अबकी बार ऐसी दिवाली मनाएं , भूखे,प्यासे मजलूमों के घर प्रेम के दिए जलाएं ! भरे हुए पेटों की छोड़कर चिन्ता, फुटपाथ पर बैठे किसी यतीम को खाना खिलाएं ! भर जाएं कोठे अन्नदाता के धान से, मेघाच्छिदत अंबर से विनती कर प्रेमरस बरसाएं ! सब जगह हो हर्षोल्लास, सब रहे निरोगी, ऐसी मंगलमयी भावना के फिर से गीत गाएं ! कोई विरहणी न आकुल हो पिय बिन , सबके घर आँगन माँ लक्ष्मी प्रेमधन बरसाएं ! भय ,भूख भ्रष्टाचार मिटे,सनातन भारत फिर बढे, आओ सब मिलकर भारत को फिर विश्वगुरू बनाएं ! न रहे अंधेरा दूर क्षितिज तक,चमक-चाँदनी हो अंबर मे, अवनी से अंबर तक कलम 'योगी' की आशा के दीप जलाए !
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