Poems



 क्रांति 

  Anil Malik       2020-11-08 05:45:16

दुनिया की भीड़ में नजर क्यों कोई आता नहीं l
डरे से हैं सब लोग क्यों इनके खून में उबाल आता नहींll

गर्दन झुका के जो जीना सीख लिया क्यों गर्व से गर्दन कोई उठाता नहींl
अहिंसा और कायरता में इन्हें क्यों नहीं अंतर समझ आता नहींll

पड़े देख घायल को रास्ते में हर कोई आहे भरता है क्यों आकर उसे कोई उठाता नहींl
आक्रोश में जल रही हैं आंखें क्यों इन में खून उतर आता नहीं ll

अन्याय को सहना सीख लिया क्रांति का चिन्ह नजर आता नहींl
स्वतंत्र हुए सालों बीत गए पर गुलामी का असर जाता नहीं ll

वक्त बदला हालत बदली विकास दर पर दर होता गया 
पर क्यों गरीब लाचार की हालत वही है उसका स्वर आज भी संसद की दीवारों में सुना जाता नहींl
समय और साम्राज्य बदले पर भी क्यों यह दास्तां का कलंक जाता नहींll

सभी जानते हैं ना कुछ लेकर आए थे ना कुछ लेकर जाएंगे
फिर भी इंसान को इंसान क्यों पहचानता नहींl
जाने किस मद में मदहोश हैं लोग कोई खुद को पहचानता नहींll

प्रश्नों की है झड़ी दिल में उत्तर क्यों  नजर आता नहीं


सदाचार सब अपन हुए इमानदारी वह कर्तव्य निष्ठा बनी भिखारी है l
धूर्तता और चाटुकारिता ने बाजी मारी है, जहां देखो यह एस करें बाकी सब में मारामारी हैll

जीवन मूल्यों के इस खेल में स्वाभिमान क्या यूं ही हारता जाएगाl
 यूं ही एक कामचोर कामकाजी की खिल्ली उड़ाएगाl
क्या यही है श्री राम का "हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा" ll 

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