झिर मिर झिर मिर मेहा बरसे पागल मनवा मिलन को तरसे मन चंचल .चित. चोर हुआ है छोड़ ..गए.. हो.. तन्हा. जबसे। बंद हुआ चिड़ियों का चहकना छोड़ दिया गुलशन ने महकना आंखे .. दरियां.. बन .. गई दूर... हुए ..हो.. जबसे.. हमसे। तू ...जबसे ...है.. रूंठ.... गया पर्वत.. का.. झरना .. सूख गया बंद हुआ.. बरगद का बड़कना चले ...गए ..हो .यारा... जबसे । तुमको... निगाहें ...ढूंढ़ ..रही हैं मिलन आश में झूम रही हैं अा जाओ तुम बन कर पुर्वाई आंखे निर्झर बरस रही जाने कबसे।
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