Poems



 तेरी औकात बता गया कोई 

  Ashok Yogi "Shastri"       2020-08-25 20:18:14

सोए  हुए  मेरे    ख्वाबों  में   आ   गया कोई
मुद्दतों बाद मेरे जज़्बातों को जगा गया कोई।

डूबे  हैं  कई   बेगुनाह   दरिया -ए- हयात  में
बहर-ए-तलातुम में भी किनारा पा गया कोई।

भूख से हलकान है मजलूम तिरे आतिश-ए-शहर में
गुर्बत  में  हक  का  निवाला  भी  खा  गया  कोई ।

घरों में कैद है जिंदगी फिज़ाओं में पसरा है सन्नाटा
अकड़ना छोड़ दे अब, तेरी औकात बता गया कोई।

ख़ामोश हैं बुत तो तानकर चादर सो गया  खुदा भी
मंजर -ए -तबाही में अपना  ईमान दिखा गया कोई ।

यूं तो मोजूं है अर्श पे तिरे कदम-ए-मर्दुम-ए-कामिल
मगर दिखाकर रुतबा , तेरी हस्ती मिटा गया  कोई ।

वक्त-ए-अज़ल  पर  यह  कैसा  मंजर  है ए- खुदा
जिंदा आदमी  का गोश्त  जानवर  खा  गया कोई ।

टूटे हैं हौंसले मगर ख्वाहिशें जिंदा रख -ए-"योगी"
दहश़त- ए - दश्त़ में  भी रास्ता  दिखा गया  कोई l 

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