Poems



 उठ जाग और अब चल 

  Dheer       2020-08-04 08:07:45

घोर निशा में निंद्रा सी छाई है,
कर्म रेखा इस तरह मुरझाई है |
चारों तरफ घोर अंधेरा, लगता !
यह तो निराशा की परछाई है ||

क्या मेरे दिन भी चले गए,
क्या किस्मत की अंगड़ाई है?
क्या मेरे दिल में जंग बहुत,
क्या मेरी ही लापरवाही है??

क्या मैं दौड़ा नहीं या दौड़ नहीं मैं पाया,
क्या मैं सोचा नहीं या सोच नहीं मैं पाया?
क्या मैं था दरिद्र या खुद को दरिद्र बनाया,
क्या मैं था असफल या खुद असफल बनाया??

दिन कहीं नहीं जाते, किस्मत नहीं है रुठी,
अंधेरा मिटेगा, निराशा हारेगी, थोड़ा लगा बल |
तेरी लापरवाही है, कर उठा, तब मिले फल |
उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल ||

तब तू दौड़ा नहीं, तब तू सोचा नहीं,
खुद को दरिद्र बनाया, असफल कहलाया |
है आगोश, कर खुद परविश्वास, तब होगा हल,
उठ जाग और चल, गुजर रहा तेरा पल पल ||

मेहनतकश लोगों ने किस्मत को भी नहीं माना,
जीत गए दुनिया सारी, प्रतिभा का नहीं बहाना |
कर शुरुआत आज ही, आएगा नहीं कभी कल,
उठ जाग और चल ,गुजर रहा तेरा पल पल || 

-*-*-*-*-