मानव जीवन
भरी दुपहरी को मैंने सुरज को ढलते देखा है जिंदा इंसानों को भी मैंने तिल तिल जलते देखा है कांटों और अंगारों पर मैंने सच को चलते देखा है निश्चल मन में भी मैंने भ्रम को पलते देखा है सत्य को मौन रह मैंने झुठ को चलते देखा है चंद सिक्कों पर मैंने चौले बदलते देखा है Copyright Kaviraj Rj yogi Baya-sikar Rajasthan