DIVYANSH SAXENA



DIVYANSH SAXENA

AIR 2 GATE 2014 IN ELECTRONICS AND COMMUNICATION




Poetry

मृत्यु और सृजन

विश्व पटल पर जब आया,
एक प्रश्न चिन्ह संग वो लाया ।
क्या है वह जो ये द्वैत करे,
नर नारायण में भेद करे।।

ईश्वर से तब मृत्यु का जन्म हुआ,
फिर महाकाल का वचन हुआ।
की जीव कुछ काल को आएगा,
फिर उसे काल ग्रास कर जायेगा।।

परंतु जीव जगत को ये न भाया,
और वो ईश्वर के चरणों में आया।
कहा कि प्रभु, हमारा वंदन स्वीकार करे,
हमारी इस वेदना पर ध्यान करे।।

प्रभु,आपका आदि न अन्त है ,
आप हो जिनसे उपजे हर छंद है।
आप से समय ने लिया जन्म,
आप पर होता दुनिया का अंत।।

आप हो सोम समान अमृत प्याला,
आपने ही  ये जीवन ढाला।
आप से ये धरती, अम्बर, पाताल है,
आप से ही तो हर जीव में संचार है।।

हम भी आपके अंश हैं,
आपसे ही उपजे वंश हैं।
जब काल हमे ग्रास कर लेगा,
तब आपका भी एक अंश हर लेगा।।

आप अगर मृत्यु का सृजन कर दोगे,
आप अपनी रचना को खुद से हर लोगे।
क्योंकि हम तो आकार चले जायेंगे,
पर आप अमर रह जायेंगे।।

प्रभु, कुछ ऐसा योग करे,
हमे इस धारा से न वियोग करे।
हम में भी ये गुण व्याप्त करे,
जिसे हम भी अनंत को प्राप्त करे।।

ये सुन कर प्रभु मंद मुस्काए,
फिर कहा सबसे, जो मिलने आए।
ये सत्य है कि तुमने मुझसे आकार लिया,
तुम्हे सृजन कर मैंने खुदको तुम में उतार दिया।।

ये सत्य ही काल तुम्हे जब हर लेगा,
तो मेरा मन भी वेदना से भर देगा।
परंतु काल का होना भी अनिवार्य है,
इससे जीवन चक्र का आधार है।।

इस लोक का जब मैंने निर्माण किया,
तब इस विचार पर भी ध्यान किया।
वसुधा, जिससे सब पोषण पाते है,
जीव जगत जिस पर समाते है।।

जरा उसका भी तुम संज्ञान करो,
उसके कष्ट पर भी ध्यान करो।
अगर काल तुमने न हर पाएगा,
तो वसूदा का बोझ बढ़ जायेगा।।

वो अगर इस बोझ तले दब जायेगी,
तो कैसे तुम्हे मातृत्व का सुख दे पाएगी।
इसलिए जो रचा है उसका विनाश अनिवार्य है,
ये ही जीव जगत का आधार है।।

ये सुन सब बोले कि भले हमे हर ले।
इस जीवन चक्र को पूर्ण कर ले।
परंतु जीव जगत को ये वरदान करे,
हम सब भी अमरत्व का पान करे।।

प्रभु, कुछ ऐसी युक्ति दीजिए,
हम पर भी कृपा दृष्टि कीजिए।
कि जब हम शून्य में लिन हो जाए,
फिर भी हम अनंत को पाए।।

प्रभु, आपके समान हम भी बन पाएंगे,
तभी तो आपका अंश कहलाएंगे।
प्रभु ये सुन विचार में लिन हुए,
दो पल शब्दों से विहीन हुए।।

फिर बोले तुम जब जगत में जाओगे,
तुम भी मेरा आकार वहां पाओगे।
जैसे मैं तुम्हें सृज पाया हूं,
अपना रूप तुम में लाया हूं।।

तुम भी इस जगत में सृज पाओगे,
अपने समान जीव को धारा पर लाओगे।
अब तुमसे इस जगत का आधार होगा,
तुमसे ही सृष्टि के कल का आकार होगा।।

इस तरह तुम जब जगत में आओगे,
उम्र को पुर्ण कर जब वैकुंठ को जाओगे।
तब काल तुम्हारी काया को तो हर पायेगा,
परंतु तुमसे उपजा वंश रह जायेगा।।

इस तरह मनुष्य को सृजन का वरदान हुआ,
और वह भी देव समान हुआ।।
:दिव्यांश सक्सेना
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घर के वृक्ष

वैसे तो पुष्प लता और वेल हर मन को हर्षाती है,
क्योंकि उनकी महक और छटा की बद्री सब जग पर छा जाती है।
किन्तु परन्तु आज इन रंगों को और अब मैं ना देखूंगा,
सब जिस पर मनमोहित है, इन सब पर आज नजर ना फैरूंगा।
आज मै सोच रहा हूं उस दरख़्त को देख कर,
जिसकी छाया के नीचे, सींचती हुआ है ये वन मनोहर।
उस विशाल वृक्ष जिसके नीचे बसी है ये बगिया,
जिसके होने से खिली है पुष्प लता और ये कलिया।
इसी वृक्ष के नीचे गुजरे है ,जहां हर एक मौसम,
हर धूप में जिसकी छाया में सब ने पाया है मरहम।
बारिशों में भी आंधियों से उसने ही बचाया था,
सर्दियों में उसके नीचे हर फूल फूल मुसकाया था।
हर कोई बगिया को देखता है, पर उस तरू को ना देख पाता है,
पर वह अपने नीचे खिले हर पुष्प को देख देख मुस्काता है।
इसलिए है वृक्ष! आज मेरा वंदन स्वीकार करे,
अपने घरों के वृक्षों से हम सब, इस तरह से प्यार करे।
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